उत्तराखंड

कालीमठ घाटी में छिपे हैं इतिहास के कई रहस्य….

ऊखीमठ :  हिमालय की गोद में बसे देवभूमि उत्तराखंड की घाटियां आज भी कईं रहस्यों व आश्चर्यों को अपने में समेटे हुए हैं। महाभारत कालीन इतिहास की कई ऐसी रोचक अनसुलझी गुत्थियां आज भी सिर्फ दंत कथाओं तक सीमित हैं। हालांकि इन रहस्यों को लेकर स्थानीय प्रमाणिकता तो आपसी बोलचाल की भाषा में है, मगर सटीक प्रमाण के अभाव में ये इतिहास का हिस्सा नहीं बन पा रही हैं।

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रुद्रप्रयाग जिले की कालीमठ घाटी में ऐसी ही एक पौराणिक धरोहर है जिसे मनणा धाम के रूप में जाना जाता है। यह धाम देवासुर संग्राम की घटना से जुड़ा माने जाने के साथ ही पांडवों की स्वर्गारोहिणी की यात्रा का भी गवाह है। कालीमठ के चौमासी से करीब 35 किमी व रांसी से करीब 45 किमी दुर्गम पैदल यात्रा के बाद ऐतिहासिक स्थल मनणा बुग्याल आता है। हैरानी की बात तो ये है कि इस धाम की मान्यता को लेकर विद्वान भी एक मत नहीं हैं।

कुछ विद्वानों का मानना है कि यहां महिषासुर राक्षस का वध हुआ था और कुछ मानते हैं कि इस स्थान पर निशुंभ राक्षस का वध हुआ था। वहीं कुछ का मानना यह भी है कि यहां देवासुर संग्राम में राक्षसों का अंत करने के लिए आदि शक्ति ने अपना प्राकट्य रूप दिया ।

इस धाम में पहुंचने का सबसे सही समय महीना सितंबर है। स्थानीय स्तर पर पोर्टर व गाइडों की सुविधा भी उपलब्ध रहती है। इस दौरान भक्तों को अपने साथ गर्म कपड़े, टैंट, राशन व दवाइयां भी साथ रखनी पड़ती हैं। रांसी वाला मार्ग धाम में पहुंचने के लिए ज्यादा सुगम बताया जाता है। स्थानीय मान्यताओं की मानें तो यहां आदि शक्ति ने महिषासुर राक्षस का वध कर उसे धरती में गाढ़ दिया था और स्वयं आदि शक्ति शिला रूप में उसके ऊपर विराजमान हो गई थीं, जिसका प्रमाण आज भी शिला रूप में है।

कुछ लोगों का मानना है कि मनसूना कसबे में आदि शक्ति ने शुंभ राक्षस का वध किया था तो निशुम्भ राक्षस बुग्यालों की और भाग गया था। विद्वानों के अनुसार उसका उल्लेख केदारखंड के 11वें अध्याय में महिषासुर मर्दन में बताया गया है। वेदपाठी स्वयंबर प्रसाद सेमवाल, पुजारी किशोरी प्रसाद भट्ट का कहना है कि दुर्गा सप्तशती के अनुसार चौथे अध्याय में आदि शक्ति ने देवताओं को वरदान दिया था कि जब भी आसुरी शक्तियां विनाश का कारण बनेंगी तो लोक कल्याण के लिए वह प्रकट होंगी।

पांचवें अध्याय में मनणा आदि शक्ति का प्राकट्य हुआ। देवासुर संग्राम में देवताओं ने शक्ति का आह्वान किया तो गौरवर्ण में यहां पर देवी प्रकट हुईं और शुंभ-निशुम्भ का वध करने करने के लिए कालीशिला में काली स्वरूप में रण चण्डी बन गईं। यहां पर शक्ति के तीन स्वरूपों में दर्शन होते हैं, जिनमें दिव्य ज्योति रूप, मूर्ति व श्रृंग रूप में आदिशक्ति यहां पर पूजित होती हैं विदित है कि यहां पर नजदीक में ही ऊषा नदी बहती है, जो ऊषा ग्लेशियर से निकलती है। यहां पर केदारनाथ मंदिर की तर्ज पर उकेरे हुए पत्थरों का भी भण्डारण है। जो यह बताते हैं कि कभी यहां पर भी भव्य मंदिर रहा होगा, जो कालांतर में दैवीय आपदाओं के कारण टूटा होगा। मंदिर का एक हिस्सा टूटा हुआ है तो गर्भ गृह आज भी मौजूद है।

रांसी के लोग हर वर्ष यहां पर छोटी राजजात के रूप में यात्रा निकालते हैं। यहां के हक-हकूक रांसी के ग्रामीणों के पास हैं और यहीं लोग पूजा पाठ करते हैं। मान्यता है कि गोत्र हत्या से मुक्ति पाने के लिए पांडव इसी रास्ते से केदारधाम व स्वर्गारोहिणी गये थे और इसके प्रमाण यहां पर पहाड़ों को काटकर बनाई गई 6 खोलियों के रूप में मिलते हैं। यहां पर पांडवों समेत कुंती माता की उकेरी हुईं प्रतिमाएं भी देखने को मिलती हैं।

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