उत्तराखंड

इस सिद्धपीठ में कन्या रूप में होती है माँ काली की पूजा….

कन्या रूप में होती है माँ काली की पूजा यहां दूर दूर से आते है दर्शन को भक्त

अनादिकाल काल से मां काली की पूजा कन्या रूप में सिद्धपीठ महाकाली मंदिर की जाती है।

रुद्रप्रयाग : रुद्रप्रयाग जिले ऊखीमठ विकास खंड के उच्च हिमालय क्षेत्र में प्रसिद्ध सिद्धस्थल काली मां के मंदिर में अनादिकाल काल से ही मां काली की पूजा की जाती है। देवी भागवत कथा में लिखा है कि इसी क्षेत्र के मनसूना स्थान में दो बड़े बलशाली राक्षस शुंभ और निशुंभ रहते थे। इन दोनों राक्षसों ने जनता को सभी हदों तक प्रताड़ित किया और कई निर्दोष लोगों को मार डाला। जिसके बाद वे देवताओं को मारने के लिए भी उतारू हो गए।

शुंभ-निशुंभ के भय से सभी देवताओं ने देवी की आराधना की। इस पर देवी 14 वर्ष की कन्या के रूप में प्रकट हुई और फिर शुरू हुआ राक्षसों का संहार। कन्या राक्षसों का वध करती चली गर्इ। सबसे पहले चंड और मुंड राक्षसों का वध कर कालीमठ में दोनों के सिर एक कुंडी में गाड़ दिए, जो कुंडी आज भी कालीमठ के मुख्य मंदिर के अंदर देखी जा सकती है।

कालीमठ में काली मां का मंदिर सिद्धपीठों में शामिल है। काली मां के दर्शन कर भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। चैत्र व शारदीय नवरात्रों में यहां विशेष पूजा होती है। कालीरात्रि को पूरी रात जागरण होता है। पूर्व में यहां पर बली प्रथा का प्रचलन था जो अब बंद हो चुकी है। भक्त श्रीफल लेकर माता के दरबार में आते हैं। कालीमठ मंदिर के पुजारी जयप्रकाश गौड़ बताते हैं कि सिद्धपीठ कालीमठ और कालीशिला में नवरात्रों में स्थानीय भक्तों के साथ ही देश-विदेश के भक्त बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। मान्यता है कि नवरात्र में जो भक्त श्रद्धाभाव से यहां मां की पूजा अर्चना करता है, उसकी मनोकामना पूरी हो जाती है।

सामाजिक कार्यकर्ता और कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष सुमंत तिवारी बताते हैं कि कालीमठ के दर्शन से हर मनोकामना पूरी होती है। नवरात्रों में तो देवी के दर्शन का महातम्य काफी अधिक है। दूर क्षेत्रों राज्यों से भी काली मां के दर्शनों को भक्त पहुंचते हैं। यह सिद्ध पीठ है प्रत्येक भक्त को मां काली के दर्शन नवरात्रों में करने चाहिए।

ऋषिकेश-बदरीनाथ हाईवे रुद्रप्रयाग तक-130, यहां से गौरीकुंड हाईवे पर गुप्तकाशी-42 किमी, गुप्तकाशी से कालीमठ मार्ग तक-10 किमी दूर जाकर पहुंचा जाता है, यहां से पैदल सौ मीटर दूरी तय कर काली नदी के दूसरे छोर पर मंदिर स्थित है।

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