उत्तराखंड

इस स्थान पर माँ काली ने किया था रक्तबीज का वध

रुद्रप्रयाग। शारदीय नवरात्री शुरु होते ही शक्तिपीठों में भक्तों का सैलाब उमड़ने लगा है। प्रदेश सरकार की ओर से जिले के दो मंदिरों को सिद्धपीठों में शामिल किया गया है, जिसमें हर रोज श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। श्रद्धालु प्रातःकाल ही मंदिरों में पहुंच रहे हैं और मां की पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद ले रहे हैं।

शारदीय नवरात्र शुरु होते ही शक्ति पीठों में भक्तों का जमावड़ा लगना शुरू हो गया है। जनपद में दो ऐसे प्रसिद्ध सिद्धपीठ हैं, जहां पर सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। श्रद्धालुओं ने घट स्थापना और जौ के बीजों का रोपण कर दिया है। रुद्रप्रयाग जनपद के प्रसिद्ध सिद्धपीठ कालीमठ, हरियाली देवी, मठियाणाखाल में भक्त मां के जयकारे लगा रहे हैं।

स्कंद पुराण के केदारखंड में वर्णन मिलता है कि इसी स्थान पर मां काली ने रौद्र रूप रखकर दानवराज रक्तबीज का वध किया था। जब रक्तबीज अपने सैनिकों के साथ देवलोक पर आक्रमण करने निकले तो दानव सेना तथा रक्तीबज के पराक्रम के आगे देवताओं की एक ना चली। स्वयं ब्रह्मा भी राक्षस राज के पराक्रम तथा बल के सामने नतमस्तक हो गये। इसके बाद देवताओं ने कईं वर्षों तक भगवान शिव की तपस्या की। भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिये। त्रिकालदर्शी भगवान शिव ने उनके आने का कारण नहीं पूछा और कहने लगे कि रक्तबीज राक्षस को मैंने ही शक्तियां प्रदान की है। इसलिये मैं भी उसका कुछ नहीं बिगाड सकता। इसलिए देवगण सरस्वती नदी के तट पर मां काली की तपस्या करने चले और मां काली को अपनी समस्याओं से अवगत कराया।

पुजारी देवेन्द्र गौड़ और सीएम भटट का कहना है कि मां काली ने देवगणों को आश्वस्त किया कि अब वे प्रकट हो चुकी हैं। रक्तबीज का वध जरूर होगा। मां काली ने कईं दिनों तक रक्तबीज के साथ युद्ध किया और अन्त में मां काली ने भयानक रूप धारण कर रक्तबीज का सिर धड़ से अलग कर दिया और बाद में गर्भगृह में समाधिस्त हो गयी। तब से लेकर आज तक यहां पर मां काली के नौ रूपों की पूजा होती है। इसी स्थान पर महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती के पवित्र मंदिर है, जहां आकर भक्त पुण्य अर्जन करते हैं। जिस सरस्वती नदी के तट पर देवगणों ने कई वर्षों तक मां काली की तपस्या की, उसी के पवित्र जल से कई चर्म रोगों का ईलाज भी होता है।

प्रदेश के दस सिद्धपीठों में मां हरियाली देवी का मंदिर भी पवित्र स्थान पर विराजमान है। हरियाली देवी योगमाया का बालस्वरूप है, जो कि शुद्ध स्वरूप में वैष्णवी है। मां हरियाली की कथा कुछ इस प्रकार है कि जब कंस ने योगमाया को पटकनी दी तो उसका एक अंश हरियाली पर्वत पर रह जाता है। तीन सौ साल पहले पाबौ गांव की एक गाय हर रोज हरियाली पर्वत पर जाकर उस पत्थर के अंश पर दूध का अभिषेक करती है। ग्रामीण परेशान हो जाता है कि उसकी गाय का दूध कहां जा रहा है। ऐसे में वह गाय का पीछा करता है, तो वह देखकर आश्चर्य चकित रह जाता है। इसके बाद मां हरियाली एक ग्रामीण के सपने में आती हैं और कहती हैं कि जसोली गांव के लोग उसके पुजारी होंगे और कोदिमा, पाबौ, दानकोट के मायके वाले। जब मां हरियाली देवी ग्रामीणों को साक्षात दर्शन देती हैं तो उसके बाद से क्षेत्र में हरियाली आने लगती है। उससे पहले क्षेत्र में सूखा पड़ा रहता था और ग्रामीण परेशान थे।

उत्तराखण्ड के प्रमुख सिद्धपीठ मंदिरों में मां कालीमठ का मंदिर प्रसिद्ध है। रुद्रप्रयाग-गुप्तकाशी मोटरमार्ग पर गुप्तकाशी से दस किमी की दूरी पर नागर शैली में मंदिर निर्मित है। कालीमठ मंदिर से डेढ़ किमी की दूरी पर महाकवि कालीदास का जन्म स्थान कविल्ठा भी स्थित है।
नगरासू-डांडाखाल मोटरमार्ग पर जसोली गांव में हरियाली देवी मंदिर प्रसिद्ध सिद्धपीठों में एक है। मुख्यालय रुद्रप्रयाग से लगभग 39 किमी की दूरी पर अवस्थित इस सिद्धपीठ की मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से मां की पूजा-अर्चना करता है तो उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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