उत्तराखंड

देश आज़ादी का ऐसा जश्न शायद ही कहीं और मनाया जाता हो

संजय चौहान
गमशाली/चमोली। डोकलाम विवाद से जहां एक ओर देश की सरहदों में तनाव बढ़ा है, वहीं हिमालय की तरह बुलंद हौसलों वाली देश की द्वितीय रक्षा पंक्ति नीती घाटी में 15 अगस्त की तैयारी जोरों पर है। ग्रामीण हर साल की तरह इस बार भी दम्फूधार में 15 अगस्त धूमधाम से मनायेंगे। यहाँ देश आज़ादी का जश्न लोकपर्व के रूप में मनाया जाता है।

पूरा देश 15 अगस्त को बड़ी धूम धाम से स्वतंत्रता दिवस मनाता है। दिल्ली के राजपथ से लेकर सियाचिन ग्लेशियर तक देश के आजादी का यह जश्न अपने-अपने तरीके से मनाया जाता है। परन्तु देश के अंतिम गांव नीति घाटी में आजादी का जश्न आज भी ठीक उसी तरह से मनाया जाता है, जैसे 70 साल पहले मनाया गया था। यहाँ 15 अगस्त को लोकपर्व के रूप में मनाया जाता है। जो अपने आप में देश प्रेम की अनूठी मिसाल है। 15 अगस्त मनाने के लिए लोग यहाँ देश के कोने कोने से आते हैं। इस घाटी को देश की दूसरी रक्षा पंक्ति के रूप में जाना जाता है। ये न केवल सीमा के प्रहरी हैं, अपितु सदियों से देश के सांस्कृतिक विरासत को संजोये हुये भी है।

एक और जंहा देश की अधिकांश आबादी आज आजादी के मायने भूल चुके हैं। वर्तमान में 15 अगस्त का मतलब महज झंडा फहराने, राष्ट्रीय गान गाने, लड्डू खाने, सांस्कृतिक कार्यक्रम करने तक ही सीमित होकर रह गया है। अधिकांश लोगों के लिए ये राष्ट्रीय पर्व महज छुट्टी का दिन होकर रह गया है। लेकिन इन सबके बीच देश में एक जगह ऐसी भी है जहां पर 16 अगस्त किसी पर्व, तीज, त्यौहार से कम नहीं है। यहाँ लोग देश की आजादी का जश्न लोकपर्व या त्योहार के रूप में मनाते हैं।

गौरतलब है की 15 अगस्त 1947 को जैसे ही रेडियो पर प्रसारण हुआ कि देश आजाद हो गया है तो सारा देश ख़ुशी से झूम उठा। देश की आजादी की सूचना मिलते ही पूरी घाटी के लोग ख़ुशी से झूमने लगे। लोगों ने अपने घरों में दीप जलाये। जिसके बाद सभी लोग गमशाली के दम्फुधार में अपने परम्परागत परिधानों को पहनकर एकत्रित होने लगे। आजादी के जश्न की ख़ुशी पर लोग एक दूसरे को बधाई देने लगे और गले मिलकर ख़ुशी का इजहार करने लगे। इस दौरान हर किसी के चेहरे पर आजादी की ख़ुशी साफ़ पढ़ी जा सकती थी। तब से लेकर आज 70 बरस बीत जाने को है, लेकिन इस घाटी के लोगों का उत्त्साह आज भी उसी तरह से बरकरार है।

15 अगस्त को सुबह घाटी के नीति गांव, गमशाली, फारकिया, बाम्पा सहित दर्जनों गांवों के लोग ढोलों की थापों के साथ आकर्षक झांकियों के रूप में बारी-बारी से गमशाली गांव के दम्फुधार में एकत्रित होते हैं। इस दौरान प्रत्येक गांव की अपनी अलग भेषभूषा होती है। झांकी होती है। जिसमें देशभक्ति को दर्शाया जाता है। प्रत्येक गांव के नवयुवक मंगल दल, महिला मंगल दल सहित बुजुर्ग भी बढ़-चढ़कर इसमें हिस्सा लेते हैं। जब सारे गांव की झांकियां दम्फुधार में पहुँचती है तो वहां पर मुख्य अतिथि द्वारा झंडारोहण किया जाता है। जिसके पश्चात प्रत्येक गांव द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है। तत्पश्चात पुरस्कार व मिठाई वितरण का कार्यक्रम किया जाता है।

इस आयोजन में महिलाओं का अहम योगदान होता है। फारकिया गांव के राजेन्द्र सिंह रावत, जगदीश सिंह रावत, कुंवर रावत, उत्तम सिंह भंडारी, संजय राणा, नीती के पूर्व प्रधान बच्चन सिंह राणा कहते हैं कि 15 अगस्त हमारे लिए किसी त्योहार से कम नहीं है। इस दिन का इन्तजार हमें पूरे साल रहता है। हम इसे लोकपर्व के रूप में मनाते हैं।जो पूरे देश में देश की आजादी की एक अनूठी मिसाल है।

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