उत्तराखंड

सेना के साथ मजबूती से खड़े होने का वक्त, डोकलाम टी-जंकशन पर चीन की दबंगई

सुरेन्द्र सिंह पांगती
(पूर्व आईएएस)

तत्कालीन सत्तापक्ष से हुई चूक के कारण वर्ष 1962 में चीन के धोखे से अचानक हमले ने भारत को संकट में डाल दिया था। चीन अभी भी सीमा पर ऐसी हरकते करते आ रहा है और भारत के पड़ोसी देशो से चीन की मिली भगत भी दृष्टिगोचर हो रही है। लद्दाख के चुमार क्षेत्र, सिक्किम के नाथुला क्षेत्र तथा चमोली जनपद के बाड़ाहोती क्षेत्र में चीनी सैनिको की हरकतो से स्पष्ट है कि चीन अपनी बदनीयती से कभी भी बाज आने वाला नही है। भारतीय सैनिको व अर्द्धसैनिको की जाँबाज़ी ने देश को अभी तक चीनी नापाक इरादो से बचाये रखा है। परन्तु देश के राजनीतिज्ञो द्वारा सामरिक महत्व के मामलो में भी मात्र सियासती दांव पेंच खेले जान से न केवल सैनिको का मनोबल गिरता रहा है, वरन देश की सुरक्षा पर खतरा बढ़ता गया है।

नाथुला से कैलास यात्रा मार्ग खुलवाना एक सामरिक भूल
हरियाणा व महाराष्ट्र के 2014 के आम निर्वाचन को ध्यान में रखते हुए वर्तमान सत्तापक्ष ने कैलास-मानसरोवर तीर्थ-यात्रा सिक्किम के नाथुला दर्रे से प्रारम्भ करवाने की घोषणा की, जो एक सामरिक भूल थी, जब कि नाथूला मार्ग खुलवाने की सफलता को चुनाव प्रचार में तुरुप के इक्के की तरह भुनाया गया। स्मरण रहे लेखक ने अपने सहयोगी पी.सी. थपलियाल के साथ मिल कर वर्ष 2014 में ही भारतीय रणनीतिकारो को आगाह किया था कि इस में निहित चीन की कूट-योजना के तहत तीर्थ यात्रा के बहाने सिक्किम में स्थित पुरातन कारमापा सम्प्रदाय के प्रमुख रुमटेक गोम्पा तक, चीन के बौद्ध अनुयाइयों के लिए भी नाथुला मार्ग खुलवाने की पहल की जाएगी।

ज्ञातव्य है सिक्किम की सरकार की ओर से धार्मिक पर्यटन के प्रोत्साहन के नाम पर इस की मांग भी करवा ली गई है। भारत का अति संवेदनशील क्षेत्र, नेपाल व भूटान के मध्य स्थित, सिक्किम राज्य की संकरी पट्टी पर चीनी रणनीतिकारो की गिद्ध-दृष्टि लगी हुई है। दक्षिण में बंगलादेश तथा उत्तर में नेपाल व भूटान के मध्य, पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी-जलपाईगुड़ी के संकरे गलियारे से जुड़ा सिक्किम का क्षेत्र आक्रामक चीन के परिप्रेक्ष में सामरिक दृष्टि से अत्यन्त संवेदनशील है। बंगलादेश आसाम के ब्रह्मपुत्र नदी से दक्षिण के भाग पर तथा चीन सम्पूर्ण अरुणान्चल प्रदेश के भाग पर अपना दावा करते रहे हैं।

चीन की इस कूट-योजना के बारे में आगाह किए जाने पर सत्तापक्ष की दृष्टि में नाथुला से कैलास यात्रा मार्ग की प्राथमिकता घटने से नाथुला पहुंचे भारतीय यात्रियो को चीन द्वारा अन्तिम समय में रोके जाने पर वहां से प्रवेश दिलाने के लिए सरकार ने अधिक जोर नही दिया और इस प्रकार भारती यात्रियो को कैलास यात्रा में जाने देने के एवज में रुमटेक गुम्पा तक नाथुला का मार्ग चीनी यात्रियो के लिए खुलवाने की उनकी कूट-योजना धरी रह गई। ढोकलाम विवाद इसी का चीनी वैकल्पिक हथकन्डा है। तीन देशो की सीमा पर स्थित ढोकलाम टी-जंकशन, नाथुला के निकट पूर्व में स्थित जेलेप्ला दर्रे के पास है। नाथुला-जेलेप्ला मोटर मार्ग में स्थित सिक्किम के कुपुक गांव से होते हुए, भूटान की सीमा के समानान्तर मोटर मार्ग भी, सिलिगुड़ी-गंतोक राज मार्ग से जुड़ी हुई है जिस से सिक्किम की राजधानी गंतोक को बाइपास करते हुए आसानी से सिलिगुड़ी पहुंचा जा सकता है।

छोटे देश भूटान की कमजोरी का लाभ लेकर चीन भूटान की भूमि ढोकलाम में मोटरमार्ग बना कर इसी सिलिगुड़ी-गंतोक राजमार्ग के निकट पहुंचने का रास्ता ढूंढ रहा है। आवश्यकता है नाथुला-जेलेप्ला में सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद किये जाने की, भूटान की सुरक्षा तंत्र को मजबूती दी जाने की और वहां चीन की सामरिक व सामाजिक घुसपैठ के प्रयासो को विफल किये जाने की।

लद्दाख के चुमार चौकी पर चीन का विरोध क्यों?
हिमांचल के स्पीती क्षेत्र से निकलने वाली नदी पारे-छ्यू जलधारा, लद्दाख क्षेत्र में प्रवेश कर चुमार से दक्षिण में प्रवाहित होकर पश्चिमी तिब्बत में प्रवाहित होती है और कुछ ही दूरी पर पुनः स्पीती क्षेत्र में प्रवेश कर स्पीती नदी में मिल जाती है। लद्दाख की भारत-चीन सीमा पर स्थित चुमार ही वह स्थान है जो चीनी घुसपैठ के सन्दर्भ में अक्सर सुर्ख़ियो में रहता है। पारे-छ्यू जलधारा स्पीती नदी की सहायक नदी है जिसे तिब्बत के बोद्पाला व शेंग्रोंग्ला तथा स्पीती सीमा पर डोंगमारला के निकट स्थित 21800 फीट ऊंची चोटी तक की श्रृंखला, पश्चिमी तिब्बत से भौगोलिक दृष्टि से पृथक करती है। वास्तव में पारे-छ्यू का सम्पूर्ण जलागम स्पीती क्षेत्र का कुदरती हिस्सा है। स्पीती नदी किन्नौर में नामग्या पर सतलज नदी में समा जाती है। पारे-छ्यू जलागम का चीन के कब्जे वाला भाग, यद्यपि छोटा सा है, यह चीन के लिये उच्च सामरिक महत्व का है। चुमार से इस नदी घाटी में चल रहे गतिविधियों का सिंहावलोकन आसान है। स्वाभाविक है चीन किसी भारतीय को इस क्षेत्र के निकट नही देखना चाहता।

यद्यपि लीपूलेख चुमार क्षेत्र के निकट नही है, परन्तु पारे-छ्यू घाटी से कैलास क्षेत्र में परम्परा से आने वाले चरवाहों व व्यापारियों से सम्पर्क होने की सदा सम्भावना रहती है। इसीलिए चीन ने भारतीय तीर्थ यात्रियो को लीपूलेख के रास्ते से दूर नाथुला के मोटर मार्ग की यात्रा का प्रलोभन दिया, जिसे सियासी फायदे के मद्देनज़र बिना सामरिक विशेषज्ञो की सलाह के भारत सरकार द्वारा स्वीकार कर लिया गया। तर्क दिया गया कि उस रास्ते मोटरमार्ग से वे लोग भी यात्रा कर पायेंगे जो उत्तराखण्ड के लीपूलेख दर्रा क्षेत्र में मोटरमार्ग न होने से यात्रा नही कर पाते हैं। यदि मोटरमार्ग की ही दरकार थी, तो हर दृष्टि से उपयुक्त हिमांचल प्रदेश के किन्नौर घाटी के शिप्कीला दर्रे से कैलास का मार्ग खुलवाया जाना चाहिए था। शिप्कीला दर्रे की ऊंचाई नाथुला से कम है और यहां से कैलास तक मोटरमार्ग की सुविधा बहुत दिनो से है। इस रास्ते कैलास की दूरी नाथुला मार्ग की तुलना में एक चौथाई से कहीं कम है और मार्ग में तप्तपकुण्ड सहित तीर्थापुरी नामक हिन्दुओ का तीर्थ भी है। माना जाता है कि यहाँ म पर दैत्य-राज भष्मासुर स्वयं भष्म हुआ था और वहां जमे गन्धक के पाउडर को दैत्य के भष्मावशेष मान कर शिव भक्त प्रसादी के रूप में स्वीकार करते हैं।

बाड़ाहोती विवाद का मक़सद कुछ और
चमोली जनपद के उत्तर-पूर्वी कोने में स्थित बाड़ाहोती का विस्तारित पठार में चीनी सैनिक प्रतिवर्ष घुसपैठ करते रहते हैं। अभी हाल में भी वहां चीन द्वारा बड़े पैमाने पर घुसपैठ किए जाने का समाचार मीडिया ने दिया है। इस क्षेत्र के मध्य में बाड़ाहोती नदी जो विष्णु प्रयाग पर अलकनन्दा नदी की प्रमुख सहायक नदी धौलीगंगा की सहायक गिरथी जलधारा का अंग है के किनारे तहसीलदार रैंक के अधिकारी के नियंत्रण में तिब्बत व्यापार के लिए भारतीय मण्डी लगती थी। परन्तु आजाद भारत के तत्कालीन राजनेताओ की अज्ञानता के कारण, बाड़ाहोती को ‘नो-मैन्स-लैण्ड’ घोषित कर दिया गया। जिस में चीन व भारतीय सैनिको के प्रवेश पर प्रतिबन्ध है। इसके दक्षिणी सीमा पर स्थित रिमखिम में भारतीय सैनिको की चौकी तैनात है। इस क्षेत्र में चीनी सैनिको का बार-बार अवैध प्रवेश चीन सरकार के आक्रामक रवैये का स्पष्ट संकेत देता है। यह भी आभास होता है कि चीन यहां अवैध घुसपैठ भारत का ध्यान अपनी सुरक्षा व्यवस्था से हटाने के लिए करता रहता है। इसके प्रतिकार स्वरूप भारतीय सुरक्षा बलो को भी समुचित कार्यवाही करने के लिए की खुली अनुमति दिये जाने की आवश्यकता है। साथ ही चीन की देश के अन्य सीमा क्षेत्र की सुरक्षा व्यवस्था सुरक्षित किए जाने की आवश्यकता है।

लीपूलेख दर्रे की स्थिति
कैलास-मानसरोवर तीर्थयात्रा का शास्त्र-सम्मत मार्ग लीपूलेख से तिब्बत में प्रवेश करता है। शास्त्रो में मार्ग में पड़ने वाले तीर्थो में धार्मिक अनुष्ठान सम्पन्न कर बद्रीनाथ स्थित ब्रह्म-कपाल में पितरो को पिण्ड-दान किये जाने का निर्देश है। वर्तमान में कैलास यात्रा लीपूलेख दर्रे से ही वापस आकर समाप्त होती है। नैपाल सीमा से लगे इस यात्रा मार्ग का भी देश की रक्षा की दृष्टि से सामरिक पहलू पर प्राथमिकता से ध्यान दिए जाने की आवश्यक है।

यह सर्वविदित है कि लीपूलेख यात्रा मार्ग को लेकर नेपाल सरकार गाहे-बगाहे विवाद उठाता रहा है। नेपाल के सीमान्त छांगरू गांव के कावा क्षेत्र में गुंजी निवासियो के पुस्तैनी खेत हैं। जहां फसल काटने के बारे में विवाद होते रहते हैं। नैपाल के माओवादी, पाकिस्तान के उग्रवादी तथा विश्व के नशीली पदार्थ के व्यापारी उत्तराखण्ड को सुरक्षित अड्डा मानते हैं। देश के राजनयिको और रणनीतिकारो की अदूरदृष्टि के कारण आज नेपाल चीन के पक्ष में और भारत के विरुद्ध खड़ा है। नेपाल के साथ चीन ने अनेक आर्थिक परियोजनाओं के कार्यान्वयन की सन्धि भी की है। ल्हासा-काठमाण्डू मोटर मार्ग का निर्माण इसका ज्वलन्त उदाहरण है। विचारणीय है कि डोकलाम की तरह औपचारिक तौर पर यहां भारत-नेपाल सीमा का चीन की सीमा पर कोई टी जंकशन निर्धारित नही है। काली/शारदा नदी ही नेपाल व भारत की सीमा रेखा है। काली नदी का उद्गम कालापानी के वृहद श्रोत में माना जाता है जो चीन की सीमा से नीचे नावेढांग के दक्षिण में स्थित है। कालापानी से चीन की सीमा तक भारत-नेपाल की सीमा रेखा परिभाषित नही है। कैलास यात्रियों के श्रद्धा स्थल, प्रसिद्ध ‘ओम-पर्वत’, इसी अपरिभाषित सीमा क्षेत्र में स्थित है।

ध्यान देने योग्य तत्थ्य यह भी है कि गुंजी-गरब्यांग के पूर्व में स्थित नेपाल की तिंकर-नम्पा घाटी से नैपाल के व्यापारी ताकलाकोट पहुंचते हैं। इस घाटी से तिंकर गांव से आगे जिस दर्रे को पार कर वहां के व्यापारी तिब्बत में प्रवेश करते हैं। उसको भी लीपूलेख (तिंकर-लीपू) नाम से सम्बोधित किया जाता है। तिंकर यांग्ती, नम्पा यांग्ती में मिल कर गव्र्यांग के नीचे काली नदी में मिल जीती है। तिंकर छांगरू क्षेत्र से पूर्व की ओर निकट ही नेपाल का हुम्ला क्षेत्र से भी स्थानीय व्यापारी, प्रसिद्ध खोजरनाथ तीर्थ स्थल तथा ताकलाकोट आते रहते हैं। नेपाल का हुम्ला-जुम्ला क्षेत्र भारत के धारचूला तहसील से सटे हुए डोटी क्षेत्र से लगा हुआ है। इन घाटियो में नेपाल सरकार की सुरक्षा व्यवस्था नही के बराबर है। भारत की ओर से भी सुरक्षा व्यवस्था कैलास यात्रा मार्ग पर ही केन्द्रित है। चीन की गतिविधियों को देखते हुए इस बात की सदा आशंका बनी रहेगी कि अपने नेपाल से मित्रता के सहारे, लीपू-तिंकर व हुम्ला दर्रे से वह कभी भी लीपूलेख क्षेत्र में आ धमक सकता है। यही नही लीपूलेख (तिंकर-लीपू) दर्रे को ही निर्धारित टी जंकशन के अभाव में कैलास यात्रा मार्ग का लीपूलेख बता कर इसे नेपाल का क्षेत्र होने का दावा कर सकता है। नेपाल द्वारा उठाये गये अनावश्यक सीमा विवादो से लगता है कि नेपाल भी चीन की हां में हां मिलाएगा।

सरकार की उपेक्षा से उपजे रोजगार के घटते अवसरो के कारण उत्तराखण्ड के निवासियो द्वारा अन्यत्र पलायन करने से सीमावर्ती क्षेत्र जन शून्य होते जा रहे हैं। सुरक्षा वाहनियो में सब से अधिक युवक इसी राज्य से भर्ती होते हैं। देश की सुरक्षा के लिए शहीद होने वालो में राज्य का योगदान, राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है। नाथुला, शिप्कीला तथा अन्य दर्रो तक मार्ग का निर्माण सम्भव है तो लीपूलेख तक क्यो नही? निर्माणाधीन लीपूलेख तक का शेष मार्ग को बनते एक दशक से अधिक समय बीत गया। यही हाल नीती, माणा, मिलम तथा नेलंग-जादोंग मार्गो का है। उत्तराखण्ड सीमाओं की सुरक्षा राष्ट्र-हित में अत्यन्त आवश्यक है। आवश्यकता है कालापानी से तिब्बत सीमा तक फैले, तिंकर-नम्पा जलागत व लीपूलेख जलागत के मध्य की श्रृंखला के चीन सीमा पर मिलन बिंदु को टी जंकशन की औपचारिक घोषणा कर इस श्रृंखला में स्थित सम्भावित पहुंच मार्गो (दर्रो) की मजबूती से सुरक्षा व्यवस्था स्थापित की जाय और उन स्थानो तक नाबेढांग से पहुंच मार्ग का निर्माण किया जाय। साथ ही बाड़ाहोती के विवाद को उच्च स्तर पर सुलझाया जाय।

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