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इस देश के चुनाव में कुछ साल बाद कैसे हो गए है मालामाल? जानिए..

इस देश के चुनाव में कुछ साल बाद कैसे हो गए है मालामाल? जानिए..

देश-विदेश : करीब 14 साल पहले नंदीग्राम में हुए जिस किसान आंदोलन की वजह से ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल की कुर्सी मिली थी, वहां बड़ी तादाद में किसानों के दिन फिर आ चुके हैं। अपनी जमीन बचाने के लिए जहां के 14 किसानों को सीपीएम के शासन में अपनी जान की कुर्बानी देनी पड़ी थी, आज वही जमीन उनके लिए सोना उगलने लगी हुई है। आलम ये है कि जिस जमीन पर खेती करके वो अपने बच्चों के लिए दो जन की रोटी जुटाने के लिए संघर्ष कर रहे थे, आज उसी जमीन की पैदावार को विदेशों में बेचने के लिए सरकार से निर्यात नीति में सहूलियतें और फूड प्रोसेसिंग में मदद की मांग कर रहे हैं। आज उनकी जिंदगी का मतलब और उसे जीने का नजरिया भी बदल चुका है।

 

 

 

झींगा पालन ने बदल दी नंदीग्राम के किसानों की तकदीर..

नंदीग्राम आज पूरे देश में इसलिए चर्चा में है, क्योंकि इस विधानसभा सीट पर इसबार के चुनाव में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का मुकाबला कभी उनके दाहिने हाथ रहे सुवेंदु अधिकारी से हो रहा है, जो लेफ्ट शासन के खिलाफ यहां हुए किसान आंदोलन के सबसे बड़े सूत्रधारों में से एक माने जाते रहे हैं। लेकिन, बंगाल और देश के दूसरे हिस्सों से लेकर विदेशों तक मे भी आज नंदीग्राम की एक और पहचान बन चुकी है। वह है, यहां के तालाबों में पैदा हो रहीं खास तरह की ‘झींगा’ मछलियां (प्रॉन)। यहां के ज्यादातर किसान अब अनाज के उत्पादन की जगह झींगा पालन की ओर शिफ्ट हो गए हैं, जिससे उनकी जिंदगी में ऐसा बदलाव आया है कि उनके जीवन के अरमानों को नए पंख लग गए हैं। मसलन, नंदीग्राम के मोहम्मदपुर के एक किसान सुखदेब मन्ना बताते हैं,’निश्चित तौर पर इसके चलते हमारी जिंदगी पहले से काफी बेहतर हो गई है।

 

 

खेतिहर से झींगा निर्यातक बन गए हैं नंदीग्राम के किसान..

नंदीग्राम के जो किसान पहले धान की खेती के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे, वो अब श्रिम्प्स और टाइगर प्रजातियों की प्रॉन के कल्चर में लग गए हैं। इसलिए,पहले के चुनावों में उन्हें उम्मीदवारों से जो मांग रहती थी, उसमें भी बहुत बड़ा बदलाव आ गया है। अब उनकी मांग होने लगी है कि उन्हें प्रॉन के निर्यात के लिए बेहतर सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएं और उन्हें फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाने में मदद दी जाए। यानी नंदीग्राम के लोगों की लालसा ही पूरी तरह से बदल चुकी है। इसकी ठोस वजह भी है। मन्ना कहते हैं, ‘8 साल हो गए मुझे खेती छोड़े और लीज पर 20 बीघा खेत लिए हुए। पहले एक बीघा खेत में 8 क्विंटल धान उगा पाता था, जिससे 7,000 रुपये मिलते थे। आज मैं उसी एक बीघा खेत में झींगे की खेती से 50,000 रुपये कमा लेता हूं। मैं बग्डा (टाइगर प्रॉन) और भेनामी झींगे की खेती करता हूं और अपने उत्पाद का ज्यादातर भाग निर्यात करता हूं। यहां के लगभग सभी किसान झींगे की खेती करते हैं, जिसमें ज्यादा कमाई की गारंटी है।

 

 

खेतों को बना रहे हैं कृत्रिम तालाब..

आज की तारीख में नंदीग्राम के लोगों ने बड़ी तादाद में अपने खेतों को कृत्रिम तालाब में बदल लिया है। वहां करीब 2,200 हेक्टेयर में मछली पालन किया जा रहा है। यहां मछली पालन के करीब 250 यूनिट हैं, जिसमें 16,000 से ज्यादा किसान लगे हुए हैं। आंकड़ों के मुताबिक सालाना 4,000 टन झींगा और दूसरी मछलियों का उत्पादन हो रहा है। श्रिम्प और प्रॉन का यहां से चीन, ताइवान, अमेरिका और जापान तक में निर्यात किया जा रहा है। आज यहां के किसानों के बच्चे राजधानी कोलकाता के कॉलेजों में पढ़ने के लिए जा रहे हैं, क्योंकि उनका जीवन-स्तर ऊंचा हुआ है।

 

 

 

सियासी दलों से इनकी मांग में भी आ चुका है बदलाव..

2007 के किसान आंदोलन में शामिल रहे आलमगीर हुसैन अब झींगा किसानों की अगुवाई करते हैं। उनका कहना है, ‘पहले हम किसानों के अधिकारों के लिए लड़ते थे। लेकिन, अब हमारा फोकस प्रॉन और श्रिंप्स की खेती पर है और हम राजनीतिक दलों से गुहार लगा रहे हैं कि हमारे लिए अमेरिका, चीन और जापान में उत्पादों के निर्यात के लिए आसान सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएं।’ खेती से मछली पालन की ओर मुड़ने की शुरुआत पूर्वी मिदनापुर के मोयना ब्लॉक से हुई थी। धीरे-धीरे यह नंदीग्राम समेत पूरे तटीय इलाकों तक फैल गया। आज की तारीख में जिले का नेट डिस्ट्रिक्ट डोमेस्टिक प्रोडक्ट में पांचवां हिस्सा मछली पालन का है, जो बंगाल में सबसे ज्यादा है।

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