उत्तराखंड

पलायन से बंजर हो चुके गांव को आबाद करने में जुटा विजय

रिवर्स पलायन
फल-सब्जी उत्पादन के साथ ही गाय और मुर्गी पालन का किया काम

बाजार में लावारिस घूम रही गायों को दिया आशियाना

रुद्रप्रयाग। यह एक ऐसे गांव की कहानी है, जो पलायन के कारण वीरान हो गया है। आज इस गांव में पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, बंजर जमीन और खंडहर घरों के सिवाय कुछ नजर नहीं आता। इन सबके बीच एक व्यक्ति ऐसा भी है, जो अपने पुस्तैनी गांव लौट आया है और गांव की बंजर जमीन को फिर से आबाद करने में जुट गया है।

हम बात कर रहे हैं जिला मुख्यालय से सटे बर्सू गांव की। यह गांव भी अन्य गांवों की तरह पलायन के कारण खाली हो गया है। गांव में रहने वाले अधिकांश परिवार अब रुद्रप्रयाग शहर से सटे पुनाड़ में शिफ्ट हो गए हैं और कुछ परिवार महानगरों में बस गए हैं। सुविधाओं के अभाव में गांव के लोगों को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा। रुद्रप्रयाग शहर के नजदीक सबसे खूबसूरत गांव में गिना जाने वाला बर्सू के आबाद होने की उम्मीद जगी है। यह उम्मीद जगाई है गांव के ही विजय सेमवाल ने। पिछले तीन वर्ष से विजय गांव की जमीन पर खेती-बाड़ी, गाय और मुर्गी पालन का काम कर रहे हैं। इससे इनकी अच्छी-खासी आय हो रही है।
विजय खेती-बाड़ी करने से पूर्व रुद्रप्रयाग शहर में रेस्टोरेंट चलाते थे। घाटा होने पर उन्होंने अपने गांव का रूख किया और बंजर जमीन को आबाद करने का बीड़ा उठाया। शुरूआत में उन्होंने सब्जी उत्पादन का काम शुरू किया।

इसके बाद उन्होंने आम, अमरूद, कटहल, नींबू, केला, अनार, अदरक, बैंगन, शिमला मिर्च, खीरा, लीची, इमली के कई पेड़ लगाए। विजय गांव में मुर्गी पालन भी कर रहे हैं। आज उनके पास करीब छह सौ मुर्गियां है। इसके साथ ही गाय की सेवा को वह अपना सबसे बड़ा धर्म मानते हैं। बाजार में छोड़ी गई गायों को वह अपने गांव में बनाई गौशाला में रख रहे हैं। इनमें कुछ गाय ऐसी भी हैं, जो दूध दे रही हैं। जबकि कुछ गाय ब्याने वाली हैं। विजय सरकार से गांव में गौशाला बनाने के लिए मदद मांग रहे हैं, ताकि बाजार में लावारिस घूम रही सभी गायों को वह पाल सकें।

बकौल विजय, ‘सरकार मदद करती है तो मत्स्य पालन और मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में भी काम करूंगा। काश्तकारी और मुर्गी, मत्स्य और गाय पालन से बीस और लोगों को यहां पर रोजगार मिल सकता है। पूरे गांव में सब्जी उत्पादन होने से बाजार की सब्जी की खपत पूरी की जा सकती है।’ विजय बताते हैं कि तीन किमी दूर खेड़ी गदेरे से गांव में पानी की सप्लाई होती है, लेकिन जल संस्थान लाइन की मेंटिनेंस नहीं कर रहा है। उन्हें खुद ही लाइन जोड़नी पड़ती है।

वह बताते हैं कि बर्सू गांव में पहले तीस परिवार रहते थे। आज परिवारों की संख्या 85 हो गई है। लेकिन गांव में कोई नहीं रहता। सभी रुद्रप्रयाग से सटे पुनाड़ या फिर बाहर बस चुके हैं। गांव में 25 मकानों पर ताले लटके हुए हैं। अधिकांश मकान खंडहर में तब्दील हो गए हैं। गांव में दो हजार नाली जमीन है। जिसमें अधिकांश जमीन बंजर पड़ी है।

काश्तकारी के क्षेत्र में उत्तम काम कर रहे काश्तकारों को प्रोत्साहित किए जाने की आवश्यकता है। उन्हें उन्नत किस्म के बीज, उपकरण और उनकी जरूरत की चीजें उपलब्ध कराए जाने की जरूरत है। ताकि खेती के प्रति उनका रूझान बढ़ा रहे। साथ ही विजय जैसे काश्तकारों को सम्मानित किया जाना चाहिए।
-विकास डिमरी, भाजयुमो जिला महामंत्री

मैं कुछ दिनों पूर्व बर्सू गांव गया था। इस गांव में फल, फूल, सब्जी उत्पादन के क्षे़त्र में वृहद स्तर पर काम किया जा सकता है। इसके लिए ग्रामीणों से बात की जाएगी। उन्होंने कहा कि काश्तकार विजय सेमवाल काश्तकारी के क्षेत्र में बेहतरीन काम कर रहे हैं। उनके अनुभवों का फायदा अन्य काश्तकारों को भी मिलेगा।
-मंगेश घिल्डियाल, जिलाधिकारी रुद्रप्रयाग

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