उत्तराखंड

आधी लड़ाई जीती हैं, आधी अभी बाकी है, शहीद हुए आंदोलनकारियों को सच्ची श्रद्धांजलि….

गैरसैंण ग्रीष्मकालीन की जगह स्थायी राजधानी बनाये राज्य सरकार..

उत्तराखंड को २० वर्षो में अभी भी नहीं मिली स्थाई राजधानी..

उत्तराखंड के लिए शहीद हुए आंदोलनकारियों की आत्माओं को सच्ची श्रद्धांजलि..

उत्तराखंड : गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा से उत्तराखंड के अधिकांश लोग इस समय ख़ुश हैं। अलग राज्य और पहाड़ में राजधानी की मांग के साथ राज्य आंदोलन हुआ था। अलग राज्य तो मिला लेकिन बीस वर्षों तक बीजेपी-कांग्रेस की सरकारें एक अदद राजधानी पर फैसला नहीं ले पायीं। भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में भी गैरसैंण को राजधानी बनाने का वादा किया था। हालांकि जिस तरह एक रात अचानक त्रिवेंद्र सिंह रावत के मन में गैरसैंण को लेकर उथल-पुथल हुई और अगले दिन बजट के ठीक बाद उन्होंने इसकी घोषणा की, उनके इस फ़ैसले के बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं थी, न ही बजट में गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने को लेकर कोई प्रावधान किया गया है, ये थोड़ा चौंकाता है और सरकार को इस फ़ैसले से जुड़े बहुत से सवालों का जवाब देना होगा।

‘राजधानी गैरसैंण’ बनाने का ये आदेश समस्त उत्तराखंडियों के लिए 20 सालों के जख्मों पर संजीवनी बूटी का काम करेगा। अब उत्तराखंड सरकार से निवेदन है कि इस अस्थायी खुशि के डेवेलपमेंट मॉडल को किसी माफियाओं के हाथों ना बिकने दें औऱ एक सप्ताह के अंदर ही राजधानी गैरसैंण के विकास का सम्पूर्ण नक्शा पत्रकार वार्ता में संवाद करके राज्य के सामने रखें !! राज्य के सभी लोग आजतक विपक्ष की इस विषय में चुप्पी पर उन्हें भी उत्तराखंड को वनवास में भेजने का पापी मानती हैं। ये लड़ाई उन तमाम शहीद हुए आंदोलनकारियों की लड़ाई हैं जिन्होंने अपने ख़ून पसीने से इस मिट्टी को सींचा हैं !!

स्थायी राजधानी गैरसैंण पर शीघ्र निर्णय लेना चाहिए..

गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाए जाने पर राज्यपाल की मुहर को राज्य आंदोलनकारियों ने संघर्ष का नतीजा बताया। कहा कि अब सरकार को स्थायी राजधानी गैरसैंण पर शीघ्र निर्णय लेना चाहिए।

फैसले के बाद राज्य आंदोलनकारी मंच की ऑनलाइन चर्चा हुई। मंच से जुड़े आंदोलनकारियों ने सरकार के कदम का स्वागत किया। कहा कि शहीदों की सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी, जब गैरसैंण को स्थायी राजधानी घोषित किया जाएगा। राज्य आंदोलन की भावना के लिहाज से यह जनता की आधी जीत है।

देवभूमि उत्तराखंड के बीस वर्ष के वनवास के बाद आखिरकार उत्तराखंड की आत्मा ‘गैरसैंण’ को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित होने पर मै तमाम संघर्षरत साथियों के प्रयासों व राज्य के सभी नागरिकों को शुभकामनाएं देता हूँ, साथ ही बद्रीविशाल से प्राथना करता हूँ कि त्रिवेंद्र बोडा जी को भविष्य में ग्रीष्मकालीन की जगह स्थायी राजधानी हेतु शक्ति प्रदान करें।

आधी लड़ाई जीती हैं, आधी अभी बाकी है !!

सचिन थपलियाल
पूर्व महासचिव छात्रसंघ,
डी.ए.वी. महाविद्यालय देहरादून

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