वृक्षों पर भी बांधी जाती है स्नेह की डोर , चमोली में रक्षाबंधन का पर्व वन और जन के रिश्ते की डोर को भी मजबूत करता है। यही वजह है कि यहां लोग वृक्षों को राखी बांधते हैं।
चमोली : यूं तो रक्षा बंधन भाई-बहन का त्योहार है, लेकिन चमोली में यह पर्व वन और जन के रिश्ते की डोर को भी मजबूत करता है। यही वजह है कि चमोली के पपड़ियाण गांव के लोग वृक्षों को राखी बांध अपनी पर्यावरण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करते हैं। रविवार को ग्रामीण वृक्षों पर राखी बांधने की तैयारी कर रहे हैं।
कभी चिपको आंदोलन की जननी रही चमोली जिले की भूमि पर्यावरण को लेकर कितनी संवेदनशील है, पपड़ियाण गांव इसकी एक मिसाल है। इस गांव के लोग पिछले एक दशक से पेड़ों को राखियां बांध रहे हैं। इसकी शुरुआत की थी सर्वोदयी कार्यकर्ता मुरारी लाल ने। मुरारी लाल बताते हैं कि गांव के आसपास चार किलोमीटर के दायरे में पनपा मिश्रित वन इसी मुहिम का परिणाम है। वह बताते हैं कि एक समय ऐसा आ गया था कि ग्रामीणों को चारा-पत्ती के लिए भटकना पड़ रहा था। गांव के आसपास के प्राकृतिक स्रोतों में भी पानी की कमी होने लगी थी। ऐसे में उन्होंने ग्रामीणों को जागरूक करने का बीड़ा उठाया और शुरू हुआ रक्षा बंधन के दिन पेड़ों पर राखी बांधने का सिलसिला। शिक्षक मनोज तिवारी बताते हैं कि जंगल से चारा पत्ती निकालने के लिए बाकायदा ग्रामीणों की बैठक की जाती है। इस बैठक में दिन तय किया जाता है और सभी ग्रामीण उसी दिन चारा पत्ती लाते हैं।
मनोज बताते हैं कि इस जंगल में आग लगने की कोई घटना नहीं होती। वजह यह कि ग्रामीण खुद ही वन के रक्षक हैं। उन्होंने बताया कि पास के वन जब कभी सुलगते हैं ग्रामीण स्वयं टोलियां बनाकर आग बुझाने में जुट जाते हैं।