उत्तराखंड

राज्य निर्माण में जिस माटी से शुरू हुआ आंदोलन, आज वीरान होते कई गांव भूतिया गांव बनने लगे..

राज्य निर्माण में जिस माटी से शुरू हुआ आंदोलन उसके लिए ठीक ढंग से होमवर्क नहीं…

आज वीरान होते कई गांव भूतिया गांव बनने लगे…

देहरादून : उद्योगविहीन पहाड़ी जनपदों में रोजगार के अभाव में हो रहा पलायन नियति बन गया है। पौड़ी जनपद से में पलायन से वीरान होते कई गांव भूतिया गांव बनने लगे हैं तो कई हाशिए पर खड़े हैं। शोचनीय यह कि राज्य निर्माण के लिए जो लड़ाई पौड़ी से लड़ी गई, उसकी कीमत उसे पलायन के रूप में चुकानी पड़ी। पिछले सात सालों में यहां से 186 ग्राम, तोक ऐसे हैं, जो खाली हो गए। साफ है कि राज्य निर्माण के इन 18 वर्षों में इस पहाड़ी जनपद के विकास के लिए जो होना चाहिए था, उसके लिए ठीक ढंग से होमवर्क नहीं हुआ। अब सबकी नजर यहां होने वाली कैबिनेट की बैठक पर टिकी है। सौगात मिलती है या फिर पलायन पर महज चिंतन, यह भी देखने वाला होगा।

1994 का दौर था जब पौड़ी की माटी से पृथक राज्य निर्माण का आंदोलन शुरू हुआ, जो समूचे राज्य में फैल कर अंजाम तक पहुंचा, लेकिन राज्य बनने के बाद गुजरे सालों में यहां कुछ ऐसा हुआ नहीं, जिससे इस संघर्ष की कीमत शहर को मिली हो। विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले इस जनपद में पंद्रह विकासखंड हैं।

लेकिन अपवाद को छोड़ दिया जाए तो हर विकासखंड पलायन के दौर से गुजर रहा है। पलायन आयोग की रिपोर्ट भी बताती है कि जनपद की 1212 ग्राम पंचायतों में से 1025 ग्राम पंचायतों में पलायन बढ़ा है। दुखद पहलू यह कि पलायन का कारण आजीविका, रोजगार की समस्या अहम रही है। ऐसे में यहां से 26-35 साल के युवाओं ने ज्यादा पलायन किया।

इसके इतर देखें तो स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में 106 ग्राम पंचायतों में तथा एक किमी की दूरी तक पेयजल की सुविधा के अभाव में 39 ग्राम पंचायतों में पलायन का संकट पैदा हुआ। वर्ष 2011 के बाद सड़क सुविधा, बिजली, स्वास्थ्य सुविधा आदि के अभाव में जनपद में करीब 33 गांव निर्जन हो गए। जनपद के विभिन्न क्षेत्रों से 25,584 व्यक्ति पूर्णकालिक तौर पर पलायन कर गए जबकि दस सालों में 1025 ग्रामों, तोकों से 47 हजार से अधिक लोगों ने अस्थाई रुप से पलायन किया। पहली बार राज्य बनने के बाद आगामी 29 जून को पौड़ी में मंत्रिमंडल की बैठक होने जा रही है। यहां के वाङ्क्षशदों की उम्मीदें भी इसी बैठक पर टिकी हैं।

पोखड़ा में सबसे ज्यादा पलायन

जनपद में पलायन का एक अहम कारण आजीविका, रोजगार की समस्या भी है। इसके अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य और आधारभूत सुविधाओं की कमी ने यहां से पलायन को काफी हद तक बढ़ाया। स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में सबसे ज्यादा पलायन पोखड़ा ब्लाक से हुआ तो शिक्षा सुविधा के अभाव में सबसे ज्यादा पलायन जनपद के यमकेश्वर ब्लॉक से हुआ। इतना ही नहीं जंगली जानवरों से परेशान होकर भी यमकेश्वर और पाबौ ब्लॉक में पलायन बढ़ा है।

नेपाली मूल के लोग कर रहे हैं खेती आबाद..

हालिया सर्वे के मुताबिक पौड़ी के आस-पास के कई क्षेत्रों में बंजर पड़ी भूमि को नेपाली लोग यहां सब्जी उत्पादन कर आबाद कर रहे हैं। इतना ही नहीं उनकी उत्पादित सब्जी यहां के स्थानीय बाजारों में भी भेजी जा रही है।

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