पहाड़ के ‘भगवान’ को सलाम, 25 सालों से पहाड़ में दे रहें है सेवायें
संजय चौहान
राज्य बने 17 साल बीत जाने को है और पहाड़ आज भी लोगों को पहाड़ जैसा लगता है। पहाड़ में कोई आने को तैयार नहीं। खासतौर पर डॉक्टर। आकर्षक वेतनमान, लुभावने पैकेज देने के बाद भी पहाड़ के अस्पतालों को आज भी डॉक्टरों का इन्तजार है। डॉक्टर व फार्मासिस्टों के आभाव में पहाड़ के अस्पताल महज पर्ची काटने के रेफर सेंटर बने हुए हैं।
शनिवार को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस है। हर वर्ष 1 जुलाई को भारत के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ बिधान चन्द्र रॉय (डॉ.बी.सी.रॉय) को श्रद्धांजलि और सम्मान देने के लिये उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर इसे मनाया जाता है। चिकित्सक दिवस के अवसर पर ग्राउंड जीरो से आपको ऐसे ही एक डॉक्टर से रूबरू करवातें हैं। जो विगत 25 सालों से पहाड़ के लोगों के लिए भगवान से कम नहीं है।
पहाड़ के सीमांत जनपद चमोली में पिंडर और अलकनंदा नदी के संगम और कर्णनगरी कर्णप्रयाग के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में तैनात सर्जन डॉक्टर राजीव शर्मा विगत 25 सालों से लोगों का इलाज करने में लगे हुए है। चमोली ही नहीं बल्कि बागेश्वर से लेकर अल्मोड़ा और रुद्रप्रयाग जनपद के मरीज भी अपना इलाज करने उनके पास आते हैं। 25 सालों में वे हजारों लोगों को नया जीवन दे चुके हैं। जिस कारण लोग उन्हें पहाड़ का भगवान मानतें हैं। 25 सालों में कई बार उनका तबादला भी यहाँ से हुआ, लेकिन हर बार उनका तबादला निरस्त करना पड़ा। कई बार तो खुद जनपद की जनता ने इनके तबादले पर जनांदोलन भी किया। डॉक्टर राजीव शर्मा की मेहनत और कार्य के प्रति समर्पण का नतीजा है की आज कर्णप्रयाग जैसे छोटे स्थान पर बड़ी बड़ी बीमारियों के बड़े-बड़े आपरेशन आसानी से हो जाते हैं। खासतौर पर गरीब लोग जिनके पास आपरेशन तक के पैसे नहीं होते है उनका भी वे निशुल्क इलाज करते हैं। पहाड़ को अपनी कर्मस्थली बनाकर उन्होंने उन लोगों के सामने एक उदाहरण पेश किया है जो पहाड़ को आज भी पहाड़ मानते हैं। एक तरफ चिकित्सकों को पहाड़ चढ़ाने में सरकार के पसीने छूट रहे हैं। वहीं दूसरी ओर डॉ. राजीव शर्मा पहाड़ से उतरने को तैयार नहीं। पहाड़ के बेटे पहाड़ में सेवाएँ देने को तैयार नहीं है और डा. राजीव शर्मा उत्तरप्रदेश के मेरठ जिले के होने के बाद भी विगत 25 वर्षों से पहाड़ की सेवा कर रहें है जो अपने आप में एक मिशाल है।
गौरतलब है की डा. राजीव शर्मा मेरठ जिले के ग्राम घसौली गोविंदपुरी के रहने वाले हैं और उन्होंने बीडी बाजोरिया इंटर कालेज सहारनपुर से 1979 में हाईस्कूल व एचडी इंटर कालेज से 1981 में इंटर किया। वर्ष 1982 में ये सीपीएमटी में चयनित हुये और वर्ष 1988 में महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कालेज झांसी से एमबीबीएस और 1991 में इसी कालेज से एमएस की डिग्री प्राप्त की। 1991 में डॉक्टरी का कोर्स पूरा करने के बाद डॉक्टर राजीव शर्मा एक बार चमोली के भ्रमण पर आये तो उनकी मुलाक़ात यहाँ पर स्वास्थ्य विभाग के तत्कालीन अतिरिक्त निदेशक डॉ. आइएस पाल से हुई, जिन्होंने उन्हें पहाड़ में स्वास्थ्य सेवाओं की हकीकत से रूबरू कराया। जिसके बाद उन्होंने मन में ठान लिया था की वह पहाड़ों में रहकर ही लोगों की सेवा करेंगे। चमोली यात्रा ने डॉक्टर राजीव शर्मा के जीवन का उदेश्य ही बदल कर रख दिया था। जिसके बाद 1992 में उन्हें कर्णप्रयाग में तैनाती मिल गई। पहाड़ी इलाका और विपरीत परिस्थितियों में शुरू शुरू में जरुर राजीव शर्मा को कुछ परेशानिया हुई, लेकिन समय के साथ उन्होंने अपने आप को यहीं की परिस्थितियों के अनुरूप ढाल दिया। वह कर्णप्रयाग में अपनी सेवाएँ देने के साथ साथ राष्ट्रीय कार्यक्रमों में भी प्रतिभाग करतें है और दूर-दराज के क्षेत्रों में शिविर भी लगाते हैं। उनकी पत्नी डॉक्टर उमारानी शर्मा भी महिला रोग विशेषज्ञ है। जो पहले रामपुर (उत्तर प्रदेश) जिला अस्पताल में तैनात थी। डॉ. शर्मा ने उन्हें भी पहाड़ की जरूरतों का अहसास कराया और कर्णप्रयाग आने को राजी कर लिया। तब से दोनों पति पत्नी पहाड़ के लोगों की सेवा कर रहे हैं।
दरअसल उत्तराखंड में चिकित्सकों के कुल 2725 पद हैं और इनमें से आधे से ज्यादा 1629 पद रिक्त चल रहे हैं। जबकि महज 1086 चिकित्सक ही वर्तमान में कार्यरत हैं। कार्यरत चिकित्सकों में अधिकतर मैदानी जनपदों में तैनात हैं। पहाड़ों की स्वास्थ्य सेवाएँ तो भगवान् भरोसे ही चर्चा रही है। सामरिक, धार्मिक, पर्यटन और आपदा की दृष्टि सीमांत जनपद चमोली अति महत्वपूर्ण है, लेकिन यहाँ की हालत और खराब है। यहां चिकित्सकों के 171 पदों के सापेक्ष महज 42 पद भरें हैं। बाकी खाली हैं। जबकि जनपद के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएँ देने के उद्देश्य से निर्मित दो ट्रॉमा सेंटर गोपेश्वर और कर्णप्रयाग डॉक्टर और फार्मासिस्टों के आभाव में महज शोपीस बने हुए हैं।
राज्य निर्माण के 17 सालों में विकास की बात करने वाले नीति नियंता यहाँ की अवाम को एक अदद ऐसा बड़ा अस्पताल नहीं दे सके, जिसमे इतराया जा सके। जिसकी बानगी विगत दो दिनों से सूबे की नकली राजधानी में देखने को मिल रही है।
ऐसे में डॉक्टरों का अकाल झेल रहे पहाड़ के लिए डॉ राजीव शर्मा किसी भगवान से कम नहीं है। इसी तरह यदि सूबे के अन्य डॉक्टर भी उनकी तरह सेवा भाव का रास्ता अख्तियार करके प्रदेश के पहाड़ी जनपदों में अपनी सेवाएँ देते है तो इससे न केवल पहाड़ों की स्वास्थ्य सेवाएँ मजबूत होंगी, अपितु पहाड़ से स्वास्थ्य के लिए हो रहे पलायन पर भी रोक लग सकेगी।