उत्तराखंड

देवीधुरा में आज फल और फूलों से खेली जाएगी बगवाल, सीएम धामी होंगे शामिल..

देवीधुरा में आज फल और फूलों से खेली जाएगी बगवाल, सीएम धामी होंगे शामिल..

 

 

 

 

 

 

देवीधुरा के खोलीखंड दुबाचौद में मां वरही के धाम में शुक्रवार को बगवाल होगी। खोलीखंड दुबाचौद मैदान में बगवाल में फल-फूलों से खेली जाएगी। बगवाल में सात थोक के योद्धा और चारखम,चम्याल, गहड़वाल, लमगड़िया और वालिग के योद्धा भाग लेंगे।

 

 

उत्तराखंड: देवीधुरा के खोलीखंड दुबाचौद में मां वरही के धाम में शुक्रवार को बगवाल होगी। खोलीखंड दुबाचौद मैदान में बगवाल में फल-फूलों से खेली जाएगी। बगवाल में सात थोक के योद्धा और चारखम,चम्याल, गहड़वाल, लमगड़िया और वालिग के योद्धा भाग लेंगे। बगवाल के लिए योद्धा तैयार हैं। बगवाल के शुभ मुहूर्त के अनुसार दोपहर एक बजे के बाद इसकी शुरुआत होगी। यहां पर मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी होंगे। डीएम नरेंद्र सिंह भंडारी और एसपी देवेंद्र पिंचा का कहना हैं कि बगवाल की सारी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।

पुलिस की व्यवस्था के साथ ही सीसीटीवी से भी निगरानी की जाएगी। मेलााधिकारी भागवत पाटनी और मेला मजिस्ट्रेट मनीष बिष्ट व्यवस्था की निगरानी कर रहे हैं। वन विभाग स्टेशन व कांवड़ मोड़ पर गाड़ियां पार्क की जाएंगी। सीएमओ डॉ. केके अग्रवाल का कहना हैं कि घायल जवानों के शीघ्र उपचार के लिए बगवाल में चिकित्सा शिविर लगाया गया है।

साफे के रंग..
गढ़वाल खाम योद्धा केसरिया, चम्याल खाम योद्धा गुलाबी, वालिग खाम योद्धा सफेद और लमगड़िया खाम योद्धा पीला साफा बगवाल में पहनेंगे। आपको बता दे कि बगवाल के दौरान इलाके में शराब की दुकान बंद रहेगी। चंपावत आबकारी निरीक्षक हरीश जोशी के अनुसार पाटी और देवीधुरा में शुक्रवार को शराब की दुकानें बंद रहेंगी। गुरुवार की रात इन दुकानों को बंद कर दिया गया।

क्या है बगवाल..

चार प्रमुख खाम चम्याल, वालिग, गहड़वाल और लमगड़िया खाम के लोग पूर्णिमा के दिन पूजा अर्चना कर एक दूसरे को बगवाल का निमंत्रण देते हैं। पूर्व में यहां नरबलि दिए जाने का रिवाज था लेकिन जब चम्याल खाम की एक वृद्धा के इकलौते पौत्र की बलि की बारी आई तो वंशनाश के डर से उसने मां वाराही की तपस्या की। देवी मां के प्रसन्न होने पर वृद्धा की सलाह पर चारों खामों के मुखियाओं ने आपस में युद्ध कर एक मानव बलि के बराबर रक्त बहाकर कर पूजा करने की बात स्वीकार ली। तभी से बगवाल शुरू हुई है।

पूर्णिमा के दिन चार प्रमुख खाम चम्याल, वालिग, गहड़वाल और लमगड़िया के निवासी एक दूसरे की पूजा करते हैं और बगवाल को निमंत्रण देते हैं। पूर्व में यहां नरबलि दिए जाने की सामान्य प्रथा थी, लेकिन चमयाल खाम की एक बुजुर्ग महिला के इकलौते पौत्र की बलि की बारी आई तो वंशनाश के डर से उसने मां वाराही की तपस्या की। देवी मां के प्रसन्न होने पर वृद्धा की सलाह पर चारों खामों के मुखियाओं ने आपस में युद्ध कर एक मानव बलि के बराबर रक्त बहाकर कर पूजा पूजा करने का फैसला किया। तभी से बगवाल शुरू हुई है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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