सोशल

सोशल मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल

गुणानंद जखमोला

– अफवाह फैलाने या झूठी पोस्ट पर हो सख्त कानूनी कार्रवाई
– ग्रुप एडमिन की जिम्मेदारी भी हो फिक्स
– साइबर लाॅ बने और अधिक सख्त

सोशल। आज सुबह जब मैं पहाड़ के प्राण लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के स्वास्थ्य के संबंध में जानकारी लेने देहरादून के मैक्स अस्पताल में पहुंचा तो उनके बेटे कविलास की आंखों में पिता के लिए चिन्ता के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे। वो परेशान था, सेकेंड ओपीनियन के विषय में विचार कर रहा था। इस बीच एक चैनल का पत्रकार साथी भी वहां पहुंच गया। निश्चित तौर पर वह भी नेगीदा के लिए उतना ही चिन्तित होगा जितना कि कविलास, लेकिन उस चैनल ने कल सोशल मीडिया पर एक बार फिर नेगीदा के बारे में गलत पोस्ट वायरल कर दी।

हालांकि बाद में इस झूठ से पल्ला झाड़ लिया कि हमने पुलिस में शिकायत की है। सच जो भी हो, लेकिन इससे कहीं न कहीं तो नेेगीदा के परिजनों का मनोबल गिरा, वो आहत हुए। ब्रेकिंग न्यूज की होड़ में कहीं हम भावनाओं से तो नहीं खेल रहे, यह पत्रकारों को सोचना होगा। पहले दिन जब नेगीदा जिंदगी के लिए जंग लड़ रहे थे, तो भी सोशल मीडिया ने उनके निधन की झूठी खबर फैला दी।

यह भी उतना ही सच है कि हजारों लोग नेगीदा के स्वस्थ होने के लिए दुआएं कर रहे हैं, और जल्द ही नेगीदा इस जंग में विजेता बनकर हमारे बीच में होंगे। मेरा मानना है कि जिंदगी और मौत ईश्वर के हाथ है। किसी के कहने से कुछ नहीं होता, लेकिन कुछ गलत कहने से दूसरे की आत्मा तो आहत होती है। परिजनों को बेचैनी तो होती है और उनके दिल से हूक भी निकलती है। ऐसा सिर्फ नेगीदा के मामले में नहीं हुआ। सहारनपुर दंगे और कश्मीर में पत्थरबाजी के लिए भी सोशल मीडिया पर फैली अफवाह जोर पकड़ती है। ऐसे में जरूरी यह है कि साइबर कानून को अधिक सख्त बनाना चाहिए। ग्रुप एडमिन की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए कि वह अपने ग्रुप में किसी अवांछनीय पोस्ट पर नजर रखे। कट-कापी-पेस्ट करने वालों को सावधान रहना चाहिए। जरूरी यह है कि जो अफवाह या झूठी या अनर्गल पोस्ट फैलाएं तो उनके खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई हो, ताकि हर नागरिक सोशल मीडिया में अपनी फारवर्ड की गई पोस्ट के लिए जिम्मेदार हो।

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