अरबपति कारोबारी जैक मा ने दो महीने में कैसे गंवा दिए 80 हज़ार करोड़ रुपये…
चीनी कारोबारी जैक मा के लिए 2020 का आख़िरी दौर अच्छा नहीं….
देश-विदेश : अलीबाबा के को-फाउंडर जैक मा को अक्तूबर के अंत से करीब 11 अरब डॉलर का झटका लगा है. भारतीय मुद्रा में ये रकम 80 हज़ार करोड़ रुपये से भी ज़्यादा है. ऐसा अधिकारियों के उनकी कंपनी और दूसरे बड़े टेक समूहों पर अपनी निगरानी बढ़ाने के चलते हुआ. अलीबाबा चीन की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है.
इस साल मा की दौलत करीब 61.7 अरब डॉलर पर पहुंच गई और वे एक बार फिर से चीन के सबसे रईस शख्स बनने के करीब पहुंच गए. ब्लूमबर्ग बिलियनेयर्स इंडेक्स के मुताबिक, हालांकि, जैक मा की नेट वर्थ घटकर 50.9 अरब डॉलर पर आ गई.इस लिस्ट में उन्हें चौथे पायदान पर रखा गया है.
इतिहास का सबसे बड़ा आईपीओ…
जैक मा की दिक्कतें तब शुरू हुईं जबकि उनकी सबसे बड़ी डील्स में से एक में मुश्किलें पैदा हो गईं. यह था ग्रुपो होर्मिगा के आईपीओ का आखिरी वक्त पर लटक जाना. नवंबर की शुरुआत तक सबकुछ ठीक था और इसे इतिहास का सबसे बड़ा आईपीओ बताया जा रहा था. लेकिन, चीजें वैसी नहीं हुईं जैसा सोचा गया था. इनवेस्टर्स ग्रुपो होर्मिगा सिक्योरिटीज के हॉन्गकॉन्ग और शांघाई स्टॉक एक्सचेजों पर आने वाले आईपीओ को खरीदने का इंतजार कर रहे थे.
यह आईपीओ करीब 34.4 अरब डॉलर का था. लेकिन, आखिरी वक्त पर चीनी फाइनेंशियल रेगुलेटर्स के इस पर सवाल उठा जाने के बाद इस आईपीओ को लॉन्च होने से रोक देना पड़ा. कुछ विश्लेषक इसे बीजिंग के एंट ग्रुप जैसे विशालकाय समूहों और खुद मा की ग्रोथ पर लगाम लगाने की कोशिश के तौर पर देख रहे हैं.
जैक मा के बयान
बीबीसी के सिंगापुर संवाददाता टिमोथी मैकडोनाल्ड का कहना है कि मा अक्सर ऐसे बयान देते थे जिससे चीन असहज हो जाता था और शायद इसी वजह से सरकार उन पर लगाम लगाना चाहती थी.
टिमोथी कहते हैं, “मा चीन की तकनीकी प्रगति की संभावनाओं और ताकत के प्रतीक से बढ़ते हुए एक खतरा बन गए थे. इस दिग्गज कारोबारी ने चीनी सरकारी अधिकारियों को उस वक्त भी उकसा दिया था जब उन्होंने खुलेआम चीन के सरकारी बैंकों की आलोचना कर दी थी और उनकी तुलना ऐसी “कठपुतली दुकानों” से कर दी थी जिनके पास कोई इनोवेटिव आइडिया नहीं है. तब से ही ग्रुपो होर्मिगा के लिए चीजें जटिल होती चली गईं. ग्रुपो होर्मिगा एक कई कारोबारों में मौजूद समूह है जिसकी हालिया वर्षों में तगड़ी ग्रोथ हुई है.
डिजिटल फाइनेंस
एंट ग्रुप की सबसे पॉपुलर सर्विस, अलीपे अलीबाबा के पेमेंट प्लेटफॉर्म के तौर पर हुई थी. यह खरीदारों का पैसा एक ट्रस्ट में तब तक रखता है जब तक कि ऑनलाइन खरीदारी करने वाले ग्राहक को उसका सामान मिल नहीं जाता है. अलीबाबा की ग्रोथ में अलीपे का बड़ा हाथ रहा है. चीन में क्रेडिट कार्ड्स के मुकाबले यह कहीं ज्यादा इस्तेमाल होता है.
जब आईपीओ को निलंबित कर दिया गया तो हॉन्गकॉन्ग स्टॉक एक्सचेंज ने कहा कि ऐसा इस वजह से हुआ है क्योंकि ग्रुपो होर्मिगा “शायद लिस्टिंग के मानकों और पारदर्शिता की जरूरतों को पूरा नहीं कर पाया है.” इसने कहा कि डिजिटल फाइनेंस के रेगुलेटरी माहौल में हुए हालिया बदलाव भी इस अड़चन की एक वजह हो सकते हैं. चीनी कंपनियों के बारे में सलाह देने वाली कंपनी मार्कम बर्न्सटीन एंड पिंचुक के डायरेक्टर ड्रयू बर्न्सटीन कहते हैं, “यह एक शानदार धंधा था. लेकिन, मुझे नहीं लगता कि चीन इसमें कोई समझौता करेगा. वे किसी एक डील के लिए अपने फाइनेंशियल सिस्टम को जोखिम में नहीं डालेंगे.
साफ-सुथरी प्रतिस्पर्धा का अभाव?
कुछ दिन पहले ही चीन के केंद्रीय बैंक ने ग्रुपो होर्मिगा के कामकाज को फिर से व्यवस्थित करने के आदेश दिए थे ताकि यह अपनी लोन, इंश्योरेंस और वेल्थ मैनेजमेंट सर्विसेज को दुरुस्त कर सके. पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना के डिप्टी गवर्नर पैन गॉन्गशेंग के मुताबिक, रेगुलेटर्स “ग्रुप होर्मिगा के खराब कॉरपोरेट गवर्नेंस”, कुछ रेगुलेशंस का पालन न किए जाने और गलत तरीकों से अपने प्रतिस्पर्धियों से जीतने की गतिविधियों का विश्लेषण कर रहे हैं.
ग्रुपो होर्मिगा ने एक बयान में कहा है कि वह एक “रेक्टिफिकेशन” वर्किंग ग्रुप की स्थापना करेगा और रेगुलेटरी जरूरतों को पूरी तरह से लागू करेगा. हालांकि, कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि नई रेगुलेटरी सख्ती का मकसद मा को घेरना है. जबकि, कुछ अन्य का मानना है कि फाइनेंशियल सेक्टर में सुधार चीन की सरकार का एक लंबे वक्त से नीतिगत लक्ष्य रहा है और इसका किसी एक कारोबारी की कंपनी से कोई लेनादेना नहीं है.
हालांकि, कंपनी चीन में सबसे बड़े पेमेंट प्रोवाइडर के तौर पर काम करती है और इसकी अलीपे सर्विस के 73 करोड़ मासिक से ज्यादा यूजर हैं, लेकिन कंपनी की क्रेडिट गतिविधियों पर रेगुलेटरों की ओर से सबसे ज्यादा चिंता जताई गई है.
मा अकेले नहीं
हालांकि, जैक मा इस पूरे विवाद के केंद्र में हैं, लेकिन वे अकेले ऐसे शख्स नहीं हैं जिन्हें रेगुलेटरी सख्ती का सामना करना पड़ रहा है. ऐसा जान पड़ रहा है कि पूरा फिनटेक सेक्टर ही चीनी रेगुलेटरों की नजर में चढ़ गया है. कुछ कंपनियों ने तो अपने कामकाज के तरीकों में बदलाव शुरू भी कर दिया है ताकि वे नए रेगुलेशंस के मुताबिक खुद को ढाल सकें. मिसाल के तौर पर, जेडी डिजिट्स, टेनसेंट, बाइडू और लुफैक्स ने अधिकारियों के ग्रुपो होर्मिगा को रोके जाने के बाद अपने प्लेटफॉर्म्स पर ब्याज वाले डिपॉजिट्स बेचना बंद कर दिया है. नोरिस कहते हैं, “मुझे नहीं लगता कि फिलहाल कोई भी इससे अछूता है और निश्चित तौर पर फाइनेंशियल प्रोडक्ट्स के संबंध में टेनसेंट और ग्रुपो होर्मिगा के सिद्धांतों में कोई ज्यादा फर्क नहीं है.