उत्तराखंड

सामरिक मुद्दे पर गैरजिम्मेदार मीडिया..

योगेश भट्ट
इन दिनों भारत और चीन के बीच डोकलाम मुद्दे पर तनातनी चल रही है, दोनो देश आमने सामने हैं। दोनो देशों की सरकार हर तरह के रणनीतिक दाव चल रही हैं। सीमा पर तनाव की स्थिति है और सीमावर्ती होने के चलते उत्तराखण्ड भी इससे अछूता नहीं है। लेकिन लगता है कि इन संवेदनशील हालतों में मीडिया अपनी भूमिका के साथ न्याय नहीं कर रहा है ।

सनसनी और ब्रेकिंग के चक्कर में मीडिया यह भूलता जा रहा है कि उसकी जिम्मेदारी क्या है। इस तनातनी के बीच उत्तराखण्ड से प्रकाशित एक प्रमुख समाचार पत्र ‘सेना ने शुरू किया बंकरों का निर्माण’ शीर्षक से एक खबर छापता है, जिसमें राज्य से लगती सीमा पर सैन्य बलों की तैयारियों की विस्तृत जानकारी दी जाती है । इतना ही नहीं, बल्कि एक बंकर की स्थान सहित एक फोटो भी छापी जाती है। मौजूदा हालात में इस खबर के पीछे समाचार पत्र और पत्रकार का अपनी सिर्फ रेटिंग के अलावा और क्या तर्क हो सकता है , यह सोचने का विषय है ? क्या इसका अहसास मीडिया को नहीं होना चाहिए कि उसकी किसी खबर का इम्पेक्ट क्या होगा। अगर यह अहसास है तो फिर क्या यह जिम्मेदार पत्रकारिता है ?

अभी तक के ट्रेंड के मुताबिक सीमांत जिले उत्तरकाशी से आयी यह खबर अब प्रिंट मीडिया से लेकर इलेक्ट्रोनिक और सोशल मीडिया में वायरल होगी। अब मुद्दे की बात यह है कि उत्तराखण्ड या देश के मीडिया के लिए क्या यह खबर होनी चाहिए ? यह खबर आखिर किसे चेता रही है? क्या देश की जनता को,सेना को या सिस्टम को? या फिर उस चीन को जिसके साथ भारत के संबंध सहज नहीं हैं? क्या यह सही नहीं कि यदि सीमा पर इस तरह की तैयारियां चल भी रही हैं तो ये छापने दिखाने की नहीं बल्कि छिपाने की होनी चाहिए।

इंटरनेट के इस दौर में जब आज कोई भी खबर दुनिया में कहीं भी देखी-पढी जा सकती है, ऐसे में सामरिक महत्व से जुड़ी इस खबर के दूरगामी परिणाम अपने लिए ही घातक हो सकते हैं । इस लिहाज से देखें तो यह चीन के लिए भारतीय सैन्य तैयारियों की सूचना मुहैया कराने जैसा भी है। राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से इस तरह की सूचनाएं गोपनीय होनी चाहिए। मगर लगता है ब्रेकिंग न्यूज देने और सनसनी फैलाने के फेर में मीडिया को इस सबसे कोई मतलब नहीं रह गया है। मीडिया अगर वाकई ‘पहरेदार’ है, तो खबर तो यह है कि दोनो देशों के बीच चल रहे तनातनी के माहौल में भारतीय अधिकारियों ने बाड़ाहोती दौरा क्यों स्थगित किया।

खबर यह है कि जब चीन के सैनिकों ने बाडाहोती में घुसपैठ कराई तो राज्य सरकार को शासन को और प्रशासन के अधिकारियों को इसकी भनक तक नहीं लगी। वह भी तब जबकि बाड़ाहोती में चीनी सैनिक पहले भी अक्सर घुसपैठ करते आए हैं। अभी कुछ समय पहले ही वहां चीनी हैलीकाप्टरों के भारतीय वायुक्षेत्र के ऊपर उड़ान भरते दिखने की खासी चर्चाएं रही। खबर तो यह है कि चीन एक तरफ सीमा पार ज्ञानिमा तक रेल पटरी बिछा चुका है और दूसरी ओर सिक्किम सीमा पर डोकलाम तक सड़क निर्माण करा रहा है, जिसका भारत विरोध कर रहा है। और यहां हमारी स्थिति ये है कि हम अपना बाड़ाहोती दौरा सड़कमार्ग अवरुद्ध होने के चलते स्थगित करने की बात कर रहे हैं । जहां तक उत्तराखंड का सवाल है तो प्रदेश की सीमा सामरिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। तकरीबन साढ़े तीन सौ कीलोमीटर का क्षेत्र चीन सीमा से लगा है। इसमें चमोली जिले में लगभग 51 वर्ग कीलोमीटर का क्षेत्र बाड़ाहोती है, जिस पर भारत और चीन दोनों ही अपना दावा करते रहे हैं। अपने दावे की प्रामाणिकता के लिए दोनों ही देश की फौजें इस क्षेत्र में लगातार आवाजाही करती रहती हैं।

चीनी सैनिक यहां आकर अक्सर चीनी वस्तुएं छोड़ जाते हैं। इस सबके बीच इस क्षेत्र पर भारत का दावा इसलिए ज्यादा मजबूत है, क्योंकि इस क्षेत्र में यहां के चरवाहे वर्षों से अपने मवेशियों को चराते आए हैं। बहरहाल इस वक्त जरूरत यह है कि सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस सीमा क्षेत्र को सैन्य तथा खुफिया दृष्टि से बेहद मजबूत किया जाए। संसाधनों के लिहाज से भी इस सीमावर्ती क्षेत्र की स्थिति मजबूत होनी चाहिए ताकि सीमा और सीमा के पार निगेहबानी हो सके। सरकारें इस पर चिंता तो जताती हैं लेकिन जरूरी और प्रभावी कदम नहीं उठ पाती। जरूरत इस बात की है कि मीडिया इन मुद्दों पर फोकस करे, ताकि चीन के साथ यदि टकराव की स्थिति उत्पन्न होती भी है तो हम अपनी स्थिति को और मजबूत कर सकें। मीडिया को यह समझना चाहिए कि सीमा पर बंकर बनने की खबर छाप कर चीन को टक्कर नहीं दी जा सकती।

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