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इस मंदिर में आने से भर जाती है निसंतान दंपतियों की सूनी गोद..

इस मंदिर में आने से भर जाती है निसंतान दंपतियों की सूनी गोद..

उत्तराखंड: अनसूइया मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले के मण्डल नामक स्थान में स्थित है। नगरीय कोलाहल से दूर प्रकृति के बीच हिमालय के उत्तुंग शिखरों पर स्थित इन स्थानों तक पहुँचने में आस्था की वास्तविक परीक्षा तो होती ही है, साथ ही आम पर्यटकों के लिए भी ये यात्रा किसी रोमांच से कम नहीं होती। यह मन्दिर हिमालय की ऊँची दुर्गम पहडियो पर स्थित है इसलिये यहाँ तक पहुँचने के लिये पैदल चढाई करनी पड़ती है।

माता अनसूया संतान दायिनी के रूप में प्रसिद्ध हैं। मान्यता है कि माता के मंदिर में जो भी निसंतान दंपती संतान कामना के लिए पहुंचते हैं, उनकी कामना जरूर पूरी होती है। प्रतिवर्ष दत्तात्रेय जयंती के मौके पर दिसंबर में माता अनसूया मंदिर में भव्य मेले का आयोजन होता है।

 

 

इस दौरान सैकड़ों की संख्या में निसंतान दंपती संतान कामना लेकर मंदिर में पहुंचते हैं। शक्ति सिरोमणि माता अनसूया को मनुष्य ही नहीं देवता भी नमन करते हैं। मान्यता है कि महर्षि अत्रि मुनि की पत्नी अनसूया की महिमा जब तीनों लोक में होने लगी तो माता अनसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने के लिए माता पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के अनुरोध पर तीनों देव ब्रह्मा, विष्णु, महेश पृथ्वी लोक पहुंचे। तीनों देव साधु भेष रखकर अत्रिमुनि आश्रम में पहुंचे और माता अनसूया के सम्मुख भोजन की इच्छा प्रकट की।

जल छिड़कते ही छह माह के शिशु बन गए थे साधु..

तीनों देवताओं ने माता के सामने यह शर्त रखी कि वह उन्हें निर्वस्त्र होकर भोजन कराए। इस पर माता संशय में पड़ गई। उन्होंने ध्यान लगाकर जब अपने पति अत्रिमुनि का स्मरण किया तो सामने खड़े साधुओं के रूप में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश खड़े दिखाई दिए। माता अनसूया ने अत्रिमुनि के कमंडल से निकाला जल जब तीनों साधुओं पर छिड़का तो वे छह माह के शिशु बन गए। तब माता ने शर्त के मुताबिक उन्हें भोजन कराया। वहीं, पति के वियोग में तीनों देवियां दुखी हो गईं।

तब नारद मुनि ने उन्हें पृथ्वी लोक का वृत्तांत सुनाया। तीनों देवियां पृथ्वीलोक में पहुंचीं और माता अनसूया से क्षमा याचना की। तीनों देवों ने भी अपनी गलती को स्वीकार कर माता की कोख से जन्म लेने का आग्रह किया। इसके बाद तीनों देवों ने दत्तात्रेय के रूप में जन्म लिया। तभी से माता अनसूया को पुत्रदायिनी के रूप में पूजा जाता है।

 

 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में जप और यज्ञ करने वालों को संतान की प्राप्ति होती है। इसी मान्यताओं के अनुसार, इसी स्थान पर माता अनसूया ने अपने तप के बल पर ‘त्रिदेव’ (ब्रह्मा, विष्णु और शंकर) को शिशु रूप में परिवर्तित कर पालने में खेलने पर मजबूर कर दिया था। बाद में काफी तपस्या के बाद त्रिदेवों को पुन: उनका रूप प्रदान किया और फिर यहीं तीन मुख वाले दत्तात्रेय का जन्म हुआ। इसी के बाद से यहां संतान की कामना को लेकर लोग आते हैं।

यहां ‘दत्तात्रेय मंदिर’ की स्थापना भी की गई है। अनसूया मंदिर के पूजारी परिवार के डा. प्रदीप बताते है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने मां अनुसूया के सतीत्व की परीक्षा लेनी चाही थी, तब उन्होंने तीनों को शिशु बना दिया। यही त्रिरूप दत्तात्रेय भगवान बने। उनकी जयंती पर यहां मेला और पूजा अर्चना होती है।

 

 

मन्दिर तक पहुँचने के लिए चमोली के मण्डल नामक स्थान तक मोटर मार्ग है। ऋषिकेश तक आप रेल या बस से पहुँच सकते हैं। उसके बाद श्रीनगर और गोपेश्वर होते हुए मण्डल पहुँचा जा सकता है। मण्डल से माता के मन्दिर तक पांच किलोमीटर की खडी चढाई है जिस पर श्रद्धालुओं को पैदल ही जाना होता है। मन्दिर तक जाने वाले रास्ते के आरंभ में पडने वाला मण्डल गांव फलदार पेडों से भरा हुआ है। यहां पर पहाडी फल संतरा बहुतायत में होता है।

मन्दिर के पास बहती कल-कल छल-छल करती नदी अमृत गंगा पदयात्री को पर्वत शिखर तक पहुँचने को उत्साहित करती रहती है। अनसूइया मन्दिर तक पहुँचने के रास्ते में बांज, बुरांस और देवदार के वन मुग्ध कर देते हैं। मार्ग में उचित दूरियों पर विश्राम स्थल और पीने के पानी की पर्याप्त उपलब्धता है जो यात्री की थकान मिटाने के लिए काफी हैं।

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