उत्तराखंड

देवस्थानम बोर्ड पर मुख्यमंत्री हुए जुदा-जुदा..

त्रिवेंद्र बोले, हमने एक भी नया मंदिर देवस्थानम बोर्ड में नहीं जोड़ा..

उत्तराखंड: देवस्थानम बोर्ड पर पुनर्विचार करने और 51 मंदिरों को बाहर रखने की घोषणा पर मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत और पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जुदा-जुदा नजर आ रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना हैं कि उनकी सरकार में चारधाम देवस्थानम बोर्ड में एक भी मंदिर शामिल नहीं किया गया था। श्री बद्रीनाथ और श्री केदारनाथ के मंदिर बद्री-केदार मंदिर समिति के जरिए एक एक्ट से पहले से ही संचालित होते हैं। इसी के तहत 51 मंदिर आते हैं।

त्रिवेंद्र की इस प्रतिक्रिया को देवस्थानम बोर्ड पर मुख्यमंत्री के उस बयान पर असहमति के तौर पर देखा जा रहा है, जिसमें उन्होंने कहा था कि 51 मंदिर बोर्ड से बाहर किए जाएंगे। मुख्यमंत्री ने शुक्रवार को हरिद्वार में चारधाम देवस्थानम बोर्ड के फैसले पर पुनर्विचार करने और 51 मंदिरों को बोर्ड से बाहर रखने की घोषणा की थी।

 

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत से जब इस संबंध में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यमुनोत्री धाम मंदिर को एसडीएम की देखरेख में संचालित किया जाता है। वर्ष 2003 तक श्री गंगोत्री धाम मंदिर में भी प्रशासक के तौर पर एसडीएम की देखरेख में संचालित होता था। अब किन कारणों से एसडीएम की व्यवस्था बदली उसके लिए पिछला अध्ययन करना पड़ेगा।

 

सरकार का देवस्थानम बोर्ड बनाने का उद्देश्य केवल वहां आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए बेहतर व्यवस्था का संचालन करना था। खुद मंदिर समितियों ने माता वैष्णोदेवी श्राइन बोर्ड की तर्ज पर यहां भी बोर्ड बनाने का सुझाव दिया था। यहां तक कि समितियां श्री पूर्णागिरी और श्री चितई के लिए भी ऐसी ही व्यवस्था चाहते रहे।

 

जहां तक इन मंदिरों में वर्षों से पूजा अर्चना कर रहे पंडों और पुरोहितों के हक- हकूक की बात है, उनके साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गयी। क्योंकि पंडा-पुरोहित इन मंदिरों में सैकड़ों वर्षों से पूजा अर्चना करते आ रहे हैं। इसलिए उनके अधिकारों को बनाए रखा गया। लेकिन सिर्फ यात्रियों के लिए बेहतर प्रबंधन के लिए बोर्ड का गठन किया गया था।

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