उत्तराखंड

जनता के बीच रहना अरूणा के जीत का बना कारण….

जनता के बीच रहना अरूणा के जीत का बना कारण…

कांग्रेस व भाजपा को जनता ने सिरे से नकारा… 

अगस्त्यमुनि नगर पंचायत में भाजपा व कांग्रेस की किरकिरी….

पूर्व अध्यक्ष के कार्यों का नहीं मिला भाजपा को कोई लाभ….

कंाग्रेस रही एकजुट, फिर भी नहीं मिला फायदा…. 

रुद्रप्रयाग। अगस्त्यमुनि नगर पंचायत में मतदाताओं ने राष्ट्रीय दलों को नकारते हुए यदि एक निर्दलीय प्रत्याशी पर भरोसा जताया है तो इसके मायने हैं कि जनता बड़े दलों के झूठे वायदों से आजिज आ चुकी है और उन्हें सबक सिखाना चाहती है। पिछली बार नपं के पहले चुनाव में जनता ने भाजपा पर भरोसा जताते हुए एकतरफा जीत दी थी, मगर इस बार पूर्व अध्यक्ष अशोक खत्री के नपं में किए बेहतरीन कार्यों को नहीं भुना पाई। वैसे तो निकाय चुनाव व्यक्ति की अपनी छवि पर लड़े जाते हैं, मगर यदि पार्टी जीतती है तो कार्यकर्ताओं को बल मिलता है और वे आने वाले दूसरे चुनावों में जीजान से लगते हैं, लेकिन यहां जनता ने कांग्रेस और भाजपा से किनारा कर दिया।

अगस्त्यमुनि नगर पंचायत में भाजपा की बुरी हार कुछ तो सोचने पर मजबूर करती ही है। साथ ही एससी-एसटी एक्ट में केन्द्र सरकार द्वारा किए संसोधन से कर्मचारियों की नाराजगी, भाजपा प्रत्याशी की जनता से दूरी, मुस्लिम तथा दलित वोटों के ध्रुवीकरण ने भाजपा को अध्यक्ष पद से दूर कर दिया। कर्मचारियों ने पहले तो नोटा का विकल्प चुना, मगर बाद में उन्होंनेे निर्दलीय प्रत्याशी के पक्ष में एक तरफा वोट किया। वहीं निवर्तमान अध्यक्ष के किए कार्यों को भी पार्टी भुना नहीं पाई। पार्टी अपने नाराज वोटरों को संभाल नहीं पाई। नतीजन वे निर्दलीय प्रत्याशी के पक्ष में शिफ्ट हो गये। कांग्रेस पार्टी ने तो अगस्त्यमुनि नगर पंचायत में जीती बाजी हारी।

प्रत्याशी चयन में गलती करने के साथ ही कुछ नेताओं के भितरघात से पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा, जबकि पहली बार किसी चुनाव में कांग्रेस एकजुट दिख रही थी और केदारनाथ विधायक ने भी पूरा जोर लगाया था। भाजपा के नाराज वोटरों के निर्दलीय प्रत्याशी के पक्ष में जाने से भी कांग्रेस से जीत छिन गई। निर्दलीय प्रत्याशी भले ही धनबल में राष्ट्रीय पार्टियों से कमजोर थी, मगर उनके पति पूर्व कनिष्ट प्रमुख रमेश बेंजवाल का लगातार जनता के बीच रहना, उनकी समस्याओं के समाधान के लिए हमेशा संघर्षरत रहना, चाहे वह आॅलवेदर रोड की समस्या हो या फिर आपदा प्रभावितों की। हमेशा आन्दोलन में भागेदारी करते हुए सफलता भी हासिल की।

इसके साथ ही पिछले चुनाव में मिली हार के कारण जनता की सहानुभूति बटोरने में वे सफल रहे। उन्हें न केवल हर वर्ग का समर्थन मिला, बल्कि कर्मचारियों की राष्ट्रीय दलों से नाराजगी को अपने पक्ष में भुनाना तथा भाजपा से नाराज वोटरों को भी समेटने में सफलता मिली। इससे बड़ी बात ये रही कि अपनी वोटों को सफलता के साथ अपनी पत्नी के पक्ष में ले गये। इस चुनाव ने यह साबित किया कि सटीक रणनीति व जनता के सुख दुख में भागेदारी सत्ता के नजदीक ला देती है, अन्यथा सत्ता से भी दूर करने में समय नहीं लगाती।

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