उत्तराखंड

बालिका से छेड़छाड़ के मामले में आरोपी को चार साल की सजा

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बालिका से छेड़छाड़ के मामले में आरोपी को चार साल की सजा
आरोपी मानसिक रूप से संतुलन खो चुकी बालिका के साथ करता था छेड़छाड़
दादी के डांटने के बाद करने लगा बल का प्रयोग
कर्नाटक की समाज सेविका मंगला ने दिया बालिका को नया जीवन
माता-पिता के साथ भाई-बहन का रिश्ता शर्मशार

रुद्रप्रयाग। थाना ऊखीमठ अन्तर्गत असहाय एवं मानसिक रूप से संतुलन खो चुकी बालिका से छेड़छाड़ कर उसके साथ अश्लील हरकत कर खिलवाड़ करने के आरोपी को सेशन जज हरीश कुमार गोयल की अदालत ने चार साल के कठोर कारावास की सजा एवं ग्यारह हजार रूपये का अर्थदण्ड से दंडित करने का आदेश सुनाया। आरोपी को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया है। मामले की पैरवी सरकार की ओर से सरकारी वकील केपी खन्ना ने करते हुए इस घृणित कृत्य के लिए आरोपी को सख्त से सख्त सजा देने की मांग अदालत के सामने रखी। गौरतलब है कि न्यायाधीश ने यह फैसला निचली अदालत से बरी आरोपी के विरूद्ध राज्य सरकार की एक अपील पर सुनवाई करते हुए विद्वान निचली अदालत का फैसला पलटते हुए सजा सुनाई।

दरअसल, मानसिक संतुलन खो चुकी बालिका को उसके माता-पिता ने गांव में बूढ़ी दादी के साथ अकेला छोड़ दिया। ग्रामीण लोग मानसिक रूप से कमजोर बालिका को खाना-खिलाते और ख्याल रखते, मगर गांव के रिश्ते का भाई ताजबर सिंह बालिका का अकेलेपन का फायदा उठाने में लगा रहा और समय-समय पर उसके साथ अश्लील हरकतें करता रहा। उसे चाॅकलेट, नमकीन, टाॅफी देकर रिझाता और गंदी हरकते करता। बालिका सब समझ तो लेती, मगर किससे कहती। कभी-कभी वह अपनी उम्र दराज बूढ़ी दादी से आरोपी ताजबर सिंह की शिकायत करती। दादी ने एक-दो बार आरोपी को डांट-फटकार लगाई, मगर आरोपी पुरूष बल कुकृत्य करता रहा। घटना अक्टूबर 2013 एवं जनवरी 2014 की है। एक दिन कर्नाटक प्रदेश की एक स्वयं सेविका श्रीमती मंगला सोनावर्ण ऊखीमठ क्षेत्र में आई हुई थी।

उन्हें इस घटना की जानकारी हुई तो वह बालिका के गांव पहुंची और बालिका ने अपनी आपबीती सुनाई। इसके बाद 13 मई 2014 को मंगला सोनावर्ण ने थाना रुद्रप्रयाग आकर आरोपी के विरूद्ध शिकायत दर्ज कर मुकदमा लिखवाया। पुलिस ने जांच कर कानूनी कार्रवाई की। विद्वान निचली अदालत ने सुनवाई कर साक्ष्य के अभाव में आरोपी को बरी किया, मगर विद्वान सेशन जज ने फैसला पलटते हुए आरोपी को सजा सुनाई और अर्थदंड ग्यारह हजार रूपये में से बालिका को प्रतिकर के रूप में दस हजार रूपये दिलाये जाने का आदेश दिया। अदालत के इस फैसले से यह साबित हुआ कि न्याय सबके लिए बराबर है।

पहले विचारण के दौरान न्यायालय के आदेश पर बालिका को मनोचिकित्सक के पास मेन्टल हाॅस्पिटल देहरादून भी भेजा गया था। बाद में उसे नारी निकेतन भेजा गया, जहां वह आज भी रह रही है। विद्वान न्यायालय ने अभिमत प्रकट किया कि पति-पत्नी एवं पिता के रिश्ते को भी इस मामले ने कलंकित किया और भाई-बहिन के रिश्ते को शर्मशार किया है।

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