उत्तराखंड

कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी के लिए रामबाण है यह पेड़

संरक्षण न होने से प्रजाति पर मंडरा रहे हैं संकट के बादल

काश्तकार चन्द्र सिंह नेगी ने अपने बगीचे में लगाए हैं पांच सौ से अधिक थुनेर के पेड़

रोहित डिमरी

रुद्रप्रयाग। विश्व में कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी के उपचार के लिए संजीवनी माने जाने वाले थुनेर के पेड़ संरक्षण के अभाव में खत्म होते जा रहे हैं। जहां सरकार का ध्यान इस ओर नहीं है, वहीं कुछ ऐसे भी काश्तकार हैं जो थुनेर के पेड़ों को बचाने की मुहिम में जुटे हैं और आने वाली पीढ़ी को भी संदेश देने का काम कर रहे हैं।

उत्तराखण्ड को देवभूमि के साथ-साथ हिमालय जड़ी-बूटी केन्द्र के नाम से भी जाना जाता है। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में कई वन औषधि पाई जाती है। उनमें एक है थुनेर का पेड़, जिससे कैंसर की दवा को बनाया जाता है। सात हजार फीट से ऊपर की उंचाईयों पर होने वाले थुनेर के पेडों से कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी की दवा बनती है, लेकिन इनके पेड़ों का संरक्षण नहीं हो पा रहा है। अंग्रेजी में इंग्लिश यू के नाम से जाना जाने वाला यह पेड़ दुनिया भर में विशेषकर उत्तरी यूरोप से लेकर उत्तरी अफ्रिका तथा एशिया में मिलता है। इसकी ऊंचाई दस फुट से लेकर अनेक स्थानों पर तीस-चालीस फुट तक मिलती है।

पहाड़ी जिलों में यह देवदार तथा राई के जंगलों के बीच पाया जाता है। इसकी बढ़त काफी कम होने के कारण इसके जंगल काफी सीमित स्थानों पर ही मिलते हैं। यह नम तथा ठंडी जलवायु में उगता है। इसका वैज्ञानिक नाम टैक्सस बकैटा है। इस पेड़ में टैक्सस नामक रसायन पाया जाता है। यह रसायन यूरोपीय देशों में कैंसर की दवा बनाने में प्रयोग होता है। यूरोपीय देशों में मिलने वाले थुनेर वृक्ष में काफी कम मात्रा में यह रसायन मिलता है और वह भी केवल उसके तने के भीतर, मगर पहाड़ों में पाये जाने वाली प्रजाति के टैकसस बकैटा में टैकसस नामक यह रसायन उसके हर अंग में मिलता है। पत्तियो से लेकर उसके तने हर जगह यह पाया जाता है।

कैंसर के अलावा इस पेड़ का परंपरागत रूप से भी अनेक बीमारियो के निदान के लिए औषधी के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके संरक्षण के लिए सरकार को सोचने की आवश्यकता है। रुद्रप्रयाग और चमोली जिले से सटे थाला बैंड गांव में काश्तकार चन्द्र सिंह नेगी ने अपने बगीचे में थुनेर के पेड़ लगाये हैं। उन्होंने पांच सौ से अधिक पेड़ों को लगाया है और इन पेड़ों की संरक्षण का जिम्मा भी उठा रहे हैं। उनकी माने तो संरक्षण के अभाव में थुनेर जैसे बहुमूल्य औषधि के पेड़ विलुप्ति की कगार पर हैं या फिर सूख रहे हैं। जबकि थुनेर के पेड़ों की छाल और पत्तियों से जूस निकालकर कैंसर और टयूमर जैसी घातक बीमारी को निजात पाने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। विश्व में इस पेड़ का बहुत ही महत्व है।

जानकारों की माने तो गांवो में आज भी जानकारी के अभाव में पशुओं में मुंहपका रोग के इलाज के लिए प्रयोग मे लाया जाता है। विश्लेषक कैलाश खंडूड़ी की माने तो थुनेर के पेड़ को संरक्षित नहीं किया गया तो यह अतीत बन जायेगा। पलायन रोकने के लिए थुनेर सबसे बड़ा जरिया बन सकता है। सरकार को इस ओर सोचने की जरूरत है। समय रहते इन पेडों का सरंक्षण उच्च स्तर पर नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में वैज्ञानिक और इतिहासकार इसे इतिहास के पन्नों में ढूंढते रह जाएंगे। वहीं जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल का कहना है कि ऐसे काश्तकारों की सरकारी स्तर से भी मदद की जायेगी, जिससे थुनेर जैसे पेड़ों का संरक्षण किया जा सके।

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