उत्तराखंड

कंगाल और बदहाल प्रदेश में जश्न का क्या औचित्य?

जाते-जाते करोड़ो की चपत लगा गये त्रिवेंद्र चचा..

नौ लाख स्मारिकाएं और सैकड़ों होर्डिंग्स का खर्च कहां से आया?

उत्तराखंड: प्रदेश दिनों-दिन कर्ज में डूब रहा है। हमारे पास वेतन देने के लिए भी पैसे नहीं हैं। हर माह एक हजार करोड़ कर्ज ले रहे हैं तो सरकार चल रही है। कुल कर्जा 60 हजार करोड़ पार कर गया है और दिसम्बर तक कर्ज 70 हजार करोड़ का कर्ज हो जाएगा। पिछले 20 साल में हमने प्रदेश के राजस्व में बढ़ोतरी के लिए कोई ठोस योजना नहीं बनाई। शराब, खनन और वनों को बेचकर ही हम सरकार चला रहे हैं। इन 20 साल में प्रदेश कंगाल हुआ और नेता व अफसर मालामाल। क्या एक भी नेता गरीब हुआ?

 

ऐसी कंगाली की हालत में भाजपा सरकार अपने चार साल पूरे होने पर जश्न मनाने जा रही है। पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के होर्डिंग्स, पोस्टर-बैनर से पूरा प्रदेश अटा हुआ था। सूत्रों के मुताबिक नौ लाख स्मारिका छप भी चुकी हैं, जिनमें त्रिवेंद्र सरकार का बखान है। अब नौ दिन पहले मुखिया बदल गया। तो सब होर्डिंग्स, पोस्टर, कटआउट बदले जा रहे हैं। स्मारिका भी बदली जाएंगी। यदि भाजपा अपने खर्च पर यह जश्न मना रही है तो मनाएं, लेकिन यदि यह पैसा सरकार यानी जनता की जेब से जा रहा है तो भाजपा सरकार को इसका हिसाब देना होगा।

 

इस जश्न से अधिक उपनल, आशा, आंगनबाड़ी, रोडवेजकर्मियों और कोरोना काल में भी सेवा में जुटे संविदाकर्मियों पर यह भारी भरकम रकम खर्च की जाती तो बेहतर होता। भाजपा सरकार को चार साल में यह बताना चाहिए कि आखिर इस सरकार ने कितने नये स्कूल खोले, वर्चुअल क्लासेस का प्रोजेकट कितना कामयाब हुआ? कितने डाक्टरों को पहाड़ चढ़ाया, कितनी सड़कों का डामरीकरण किया, कितनी पेयजल योजनाओं पर अमल हुआ। कितने अस्पताल खोले? रेलवे ने जिन ग्रामीणों की जमीनों को अधिग्रहित किया क्या उनका विस्थापन हुआ?

 

शहरीकरण के नाम पर नेताओं और अफसरों ने कितने गांवों की ग्राम सभा, पालिका और नगर पंचायतों की भूमि माफियाओं को बेच दी। चारधाम के कटे और मलबे में दबे पेड़ों का क्या हुआ। ऑस्ट्रेलिया से आई भेड़ों का क्या हुआ? किस विधायक को सरकार ने विकास के लिए कितनी निधि दी थी और कितनी खर्च हुई। इंवेस्टर सम्मिट में आए 1 लाख 24 हजार करोड़ के निवेश प्रस्ताव पर कितना काम हुआ? कितनी बेटियां बचाई- कितनी पढ़ाई। कितनी प्रसूताओं ने बिना इलाज दम तोड़ा। हेली एम्बुलेंस क्यों नहीं चली? आदि हजारों प्रश्न हें जिनका जवाब चाहिए। स्मारिका नहीं। सरकार चार साल की उपलब्धियों पर श्वेतपत्र जारी करें।

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