भाजपा और कांग्रेस को लगा जोर का झटका…
अध्यक्ष पद की दो सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार जीते, भाजपा-कांग्रेस को मिली एक-एक सीट…
हार के करणों की समीक्षा कर रही पार्टियाँ…
रुद्रप्रयाग। निकाय चुनाव के परिणाम घोषित होने के बाद राष्ट्रीय दलों को जोर का झटका धीरे से लगा है। दोनों पार्टियों ने हार के कारणों की समीक्षा शुरू कर दी है। पार्टी में इस बात पर भी मंथन होने लगा है कि कहीं प्रत्याशी के चयन में चूक तो नहीं हो गई या फिर रणनीति के मोर्चे पर सांगठनिक कमजोरी के चलते हार का मुँह देखना पड़ा है। नगर पंचायत सीटों में दो निर्दलियों प्रत्याशियों के चुनाव जीतने से भाजपा और कांग्रेस को अपनी जमीन खिसकने का भी खतरा पैदा हो गया है। जबकि भाजपा और कांग्रेस इन चुनावों को लोकसभा चुनाव की रिहर्सल के रूप में भी देख रहे थे।
जनपद में रुद्रप्रयाग नगर पालिका के साथ ही तिलवाडा, अगस्त्यमुनि और ऊखीमठ नगर पंचायत के परिमाण भाजपा और कांग्रेस के लिए आशातीत नहीं रहे। इन चारों सीटों पर अध्यक्ष पद पर भाजपा और कांग्रेस को सिर्फ एक-एक सीट पर ही जीत हासिल हुई है। दो सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने बाजी मारी है। रुद्रप्रयाग नगर पालिका में कांग्रेस प्रत्याशी गीता झिंक्वाण की ताजपोशी से कांग्रेस का दस साल का वनवास ख़त्म हो गया है। ऊखीमठ नगर पंचायत में पहली बार भाजपा ने परचम लहराया है। यहाँ भाजपा से अध्यक्ष पद के प्रत्याशी विजय राणा ने फतह हासिल कर भाजपा की लाज बचा दी। नगर पंचायत अगस्त्यमुनि की महिला आरक्षित सीट से निर्दलीय प्रत्याशी अरुणा बेंजवाल ने कांग्रेस और भाजपा को चारों खाने चित करते हुए जीत का परचम लहराया। पहली बार नगर पंचायत बनी तिलवाडा में भी निर्दलीय प्रत्याशी संजू जगवाण की जीत से भाजपा और कांग्रेस की रणनीति धरी की धरी रह गई।
गौर करने वाली बात यह है कि जनपद में दो विधानसभा सीटों रुद्रप्रयाग से भाजपा और केदारनाथ से कांग्रेस के विधायक हैं। इन चुनावों में भाजपा विधायक भरत सिंह चैधरी और कांग्रेस विधायक मनोज रावत की प्रतिष्ठा दाँव पर लगी थी। दोनों विधायकों की विधानसभा क्षेत्र से उनकी पार्टी का एक भी उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाया। माना जा रहा है कि संगठन स्तर पर टिकट वितरण को लेकर कार्यकर्ताओं में नाराजगी बनी हुई थी। पार्टी कार्यकर्ताओं के भीतरघात की वजह से भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार चुनाव हार गए। हालाँकि दोनों पार्टियों के पदाधिकारी अब हार के कारणों पर चिंतन-मनन करने लगे हैं।
बहरहाल, दो सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत ने भाजपा और कांग्रेस की नींद उड़ा दी है। इसके साथ ही राजनीतिक समीक्षक इसे राष्ट्रीय पार्टियों के प्रति जन आक्रोश के रूप में देख रहे हैं और भविष्य में इसे लोकतंत्र के लिये शुभ संकेत मान रहे हैं।