दो हेक्टेयर जंगल में 56 प्रजाति की एक लाख पौध
फायर सीजन में दूर-दूर से से आश्रय बनाने मिश्रित फाॅरेस्ट में पहुंचते हैं पशु-पक्षी
ग्रामीण के जंगलों से जुड़ने से ही थमेगी आग की घटनाएंः जंगली
रुद्रप्रयाग। हम बात कर रहे रानीगढ़ पट्टी के कोट मल्ला गांव की। गांव के पास पर्यावरणविद् जगत सिंह जंगली ने मिश्रित वन तैयार किया है। करीब चार दशक पूर्व जगत सिंह जंगली ने मिश्रित वन की कल्पना की थी। सीमित संसाधनों और अपने प्रयासों से उनकी यह कल्पना साकार हुई। आज करीब दो हेक्टेयर जमीन पर उनका मिश्रित जंगल फैला हुआ है। जंगल में 56 मिश्रित प्रजाति के करीब एक लाख पौधे हैं। यह पौधे अलग-अलग जलवायु में उगाई जाती है। लेकिन यहां पर एक ही जंगल में दस हजार से लेकर दो हजार फीट तक विभिन्न प्रजातियों के पेड़ हैं। खासकर उच्च हिमालयी क्षेत्र में उगने वाला थुनेर, भोजपत्र, देवदार, हेरिंज, अंगू, चमखड़ी, तराई क्षेत्र में उगने वाले टीक, सागौन, शीशम, ढाक, रबर प्लांट, बांस समेत विभिन्न प्रजाति के पेड़-पौघे यहां पाए जाते हैं। उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली बद्रीनाथ तुलसी, नैर, केदारपत्ती, कुटी, सालौन पंजा, चन्द्राह, काली हल्दी, गंगा तुलसी समेत कई जड़ी-बूटियां यहां उगाई गई हैं। मिश्रित जंगल में देश ही नहीं विदेश में पढ़ने वाले कई छात्र शोध कर चुके हैं।
इस साल भी रुद्रप्रयाग वन प्रभाग के अन्तर्गत अधिकांश जंगलों में आग लगने में वन सम्पदा को खासा नुकसान पहुंचा। 70 हेक्टेयर से अधिक जंगल आग की भेंट चढ़े। सिर्फ पर्यावरणविद् जंगत सिंह जंगली का जंगल आग की चपेट में नहीं आ पाया। उनकी कई सालों की मेहनत का नतीजा है कि आज तक उनके जंगल में आग की एक भी चिंगारी नहीं आई। इस बार उनके मिश्रित जंगल के चारों ओर चीड़ के जंगल आग से खाक हो गए। लेकिन यह आग उनके जंगल में पैर नहीं पसार पाई। श्री जंगली बताते हैं कि जंगल को आग से बचाने के लिए गांव के लोगों ने पूरा साथ दिया। अगल-बगल के जंगलों में लगी आग को अपनी बाउंड्री में नहीं घुसने दिया गया। साथ ही जंगल की आग बुझाने के लिए रात-दिन काम किया। उनका कहना है कि फायर सीजन में रात-दिन जंगल की चैकसी करनी पड़ती है।
जंगली ने कहा कि जंगल के भीतर आग की रोकथाम के लिए भी कई प्रयोग किए गए हैं। मसलन, जंगल में जगह-जगह गडढ्े बनाकर उसमें बरसाती पानी एकत्रित किया जाता है। इस पानी से जंगल में नमी बनी रहती है। इससे जंगल में आग लगने का खतरा नहीं रहता है। उन्होंने बताया कि जब जंगलों में भीषण आग लगती है, तब वन्य जीव-जंतु हमारे जंगल में आकर आश्रय पाते हैं। उनका कहना है कि जंगलों को आग से तभी बचाया जा सकता है, जब हम गांव के लोगों को जंगल आधारित रोजगार जोड़ेंगे। चीड़ की पत्तियांे से रोजगार उपलब्ध कराने के सिर्फ दावे ही किए तो हैं, लेकिन जमीन पर काम होता दिखाई नहीं देता। जंगलों से ग्रामीणों को जोड़े बिना आग रोकना संभव नहीं है। सरकार को ऐसी नीति बनानी चाहिए, जिससे लोगों को जंगल से रोजगार मिले। तभी वह जंगलों की अहमियत समझेंगे।
जंगलों से युवाओं को जोड़ा जाएः जंगली
रुद्रप्रयाग। महिलाओं की घास-लकड़ी की समस्या दूर करने के लिए चार दशक पूर्व पर्यावरणविद् जगत सिंह जंगली ने रुद्रप्रयाग (तत्कालीन चमोली) जिले में मिश्रित जंगल लगाने की जो पहल शुरू की थी, वह आज एक हरे-भरे जंगल के रूप में देश-दुनिया के लिए नजीर बनी हुई है। वर्ष 1974 में रुद्रप्रयाग जिले की रानीगढ़ पट्टी के कोट मल्ला गांव में बंजर पड़ी करीब नब्बे नाली भूमि पर जंगली ने मिश्रित वन लगाने का कार्य शुरू किया था। जहां वर्तमान में खूबसूरत जंगल लहलहा रहा है। अब उनका प्रयास है कि इस मिश्रित वन को आजीविका से जोड़ा जाए। इसके तहत वे फल व मौसमी सब्जियों के उत्पादन पर जोर दे रहे हैं। वह कहते हैं कि यदि जंगलों से युवाओं को जोड़ा जाए तो इससे पलायन पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी। साथ ही आजीविका के साधन भी विकसित होंगे।
जंगली को मिले सम्मान
1993: जंगली की उपाधि
1995: गौरा देवी स्मृति सम्मान
1996: हिम गौरव सम्मान
1997: पर्यावरण प्रहरी सम्मान
2000: इंदिरा प्रियदर्शनी वृक्ष मित्र राष्ट्रीय पुरस्कार
2002: राज्यपाल पुरस्कार
2005: उत्तराखंड गौरव सम्मान
2006: ग्रीन अवार्ड सम्मान
2010: उत्तरायणी अवार्ड
2012: उत्तराखंड ग्रीन अंबेसडर