उत्तराखंड

केदारपुरी के रक्षक भुकुंट भैरव जी का यज्ञ हुआ संपन्न….

जगत कल्याण और धाम की सुरक्षा के लिए हर वर्ष किया जाता है हवन…

हर वर्ष आषाढ़ माह संक्रांति को होता है बाबा भैरव नाथ जी का यज्ञ 

तीर्थ पुरोहित समाज और मंदिर कर्मचारियों द्वारा किया जाता है यज्ञ 

कुलदीप बगवाडी

केदारनाथ :  शनिवार को विधि-विधान पूर्वक केदारपुरी के रक्षक (क्षेत्रपाल) भुकुंट भैरव जी का यज्ञ और पूजा-अर्चना तीर्थ पुरोहित समाज व अन्य ब्राह्मणों द्वारा किया गया। इस मौके पे यज्ञ में जगत कल्याण ,क्षेत्र की सुरक्षा व समृद्धि के लिए आहूतियां डाली गई।।

हिमालय की गोद में बसे भगवान केदारनाथ के कपाट खुलने का श्रीगणेश भैरव पूजन के साथ शुरू होता है । परम्परा के अनुसार भगवान केदारनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली के धाम रवाना होने से पूर्व केदारपुरी के क्षेत्र रक्षक भैरवनाथ की पूजा का विधान है। लोक मान्यता है कि भगवान केदारनाथ के शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मन्दिर में विराजमान भैरवनाथ की पूजा के बाद भैरवनाथ केदारपुरी को प्रस्थान कर देते हैं।

कौन है भुकुंट भैरव व क्या है इनकी पूरी कहानी आइये आपको बता दें

हर यात्री केदारनाथ तो पहुंच जाता है लेकिन केदारनाथ से बमुश्किल 300 मीटर की दूरी तय कर भुकुंट भैरों के दर्शन करने का साहस नहीं कर पाता क्योंकि केदारनाथ क्षेत्र में कम ऑक्सीजन होने व केदारनाथ तक पहुँचने की थकान तीर्थ यात्री का साहस यहीं दर्शन कर समाप्त कर देती है जबकि पुराणों व जनश्रुतियों के आधार पर बिना भैरों के दर्शन के यह यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाती।

भैरवनाथ मन्दिर केदारनाथ से आधा किमी की दूरी पर स्थित है। यह मन्दिर विनाश के हिन्दू देवता शिव के एक गण भगवान भैरव के समर्पित है। 3001 ईसा पूर्व पहले रावल या राजपूत श्री भिकुण्ड ने मन्दिर में इष्टदेव की स्थापना की थी। मन्दिर के इष्टदेव को क्षेत्रपाल या क्षेत्र का संरक्षक के रूप में भी जाना जाता है। लोककथाओं के अनुसार जब सर्दियों में बाबा केदार नाथ का मंदिर बन्द कर दिया जाता है तब भैरवनाथ मन्दिर परिसर की रखवाली करते हैं।

भैरवनाथ का यह स्थान केदारनाथ मन्दिर से दक्षिण दिशा की तरफ आधा किमी की दूरी पर स्थित है । ये मूर्तियां भगवान भैरव की हैं जो इसी प्रकार विना छत की रहती हैं । भैरव को भगवान् शिव का ही एक रूप माना जाता है। प्रत्येक शिव व शक्ति पीठों में समस्त देवों के दर्शन के अन्त में भैरों बाबा के दर्शन करने अनिवार्य माने जाते हैं।

केदारपुरी के रक्षक (क्षेत्रपाल) भुकुंट भैरव की पूजा-अर्चना  के बाद पुजारी बागेश लिंग ने बताया कि केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलने से पूर्व बाबा भैरवनाथ की पूजा-अर्चना की जाती है। भैरवनाथ की पूजा केवल मंगलवार व शनिवार को की जाती है।

पहले रावल थे भुकुंट
भुकुंट भैरव बाबा केदार के पहले रावल थे। इसके अलावा भुकुंट भैरव केदारनाथ के क्षेत्रपाल देवता हैं। केदारबाबा से पहले केदारनाथ में भुकुंट भैरव की पूजा की जाती है।

 

जब कपाट बंद होने के वक्त केदारनाथ धाम में हुआ ‘चमत्कार’, देखकर अचंभित हुए सब

वर्ष 2017 में मंदिर समिति और प्रशासन को गर्भगृह के कपाट बंद करने में खासी दिक्कतें हुई। लाख कोशिशों के बाद भी दरवाजे के कुंडे नहीं लग पाए। मंदिर के गर्भगृह की दीवारों पर चांदी लगाई गई थी । इसलिए कुंड लगाने में खासी दिक्कत हुई।
कई प्रयास के बाद भी सफलता नहीं मिली तो बीकेटीसी के सीईओ बीडी सिंह और वयोवृद्ध तीर्थ पुरोहित श्रीनिवास पोस्ती ने भगवान केदार के क्षेत्रपाल भकुंड भैरव का आह्वान किया। कुछ ही पल में भकुंड भैरव अपने पश्वा अरविंद शुक्ला पर अवतरित हुए। देवता द्वारा कुंड को स्पर्श करते ही वह दूसरे कुंडे पर जुड़ गया, जिसके बाद पदाधिकारियों व अधिकारियों की मौजूदगी में ताला लगाया गया। बीकेटीसी सीईओ ने बताया कि शीतकाल में केदारनाथ धाम की सुरक्षा भगवान भैरवनाथ के भरोसे होती है।

भुकुंट भैरव की चेतावनी से लेना होगा सबक

जिसे भुकुंट को केदारनाथ धाम का प्रथम पुजारी बताया जाता है उसकी केदारनाथ आपदा के बाद जो चेतावनी यहां के स्थानीय लोगो, या पुरोहित लोगो लिए थी या पूरे उस हिन्दू समाज के लिए जो यहां तीर्थ यात्रा को सिर्फ और सिर्फ हनीमून स्थल या फिर मनोरंजन का स्थान समझकर यहां पहुंचता है कहा नहीं जा सकता क्योंकि सिर्फ पुरोहित समाज को ही नहीं हमें भी यह बड़ी चेतावनी समझनी होगी कि हम हिन्दू विधि विधानों के साथ किसी भी धाम की यात्रा करें क्योंकि यहां प्रकृति के अनुशासन को बरकरार रखना व धर्म स्थलों की मर्यादा का ख़्याल रखना हमारा कर्तब्य है न कि वहां के तीर्थ पुरोहित समाज का। इसलिए यह जरूरी है कि ऐसे अध्याय दुबारा न दोहराये जाएं इसका हमें ख्याल रखना होगा।

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