भरतू की ब्वारी की पीड़ा-2
उपासना सेमवाल
चारो तरफ स्याह अंधेरे के बीच पसरा हुआ सन्नाटा भरतू की ब्वारी के अन्तर्मन को डरा डरा सा जाता। मन में कई तरह के ख्याल आते जाते, सारा गांव फुकरपट नीन्द में सो गया । भरतू की ब्वारी दरवाजे से कभी रास्ते की ओर देखती तो कभी रसोई की ओर और फिर एक गहरी सांस लेकर आसमान की ओर देखती। दिन भर की थकान से उसका शरीर साथ नहीं दे रहा था। फिर उसने रास्ते की ओर देखा और सीढ़ियों पर अडासा (सहारा) लेकर बैठ गई । सुबह का गया भरतू अभी तक नही लौटा। पता नही कब आएँगे, ऐसा सोच ही रही थी कि भरतू आ गया। वहीं रोज की तरह दारू में धुत्त आते ही गालियो की बौछार से अन्दर प्रवेश करते ही सीधे रसोई की ओर चला गया। उसने चुपचाप दो थाली खाने की लगाई। अभी खाने के लिये एक निवाला मुँह में डाला ही था कि भरतू भडक उठा। ऐसा खाना खिलाती है मुझे। यही सिखायातेरी मां ने और बोलते बोलते अपनी पत्नी को दो चार थप्पड़ लात-घूसे जड दिये। आंखो में आंसुओ का सैलाब सिसकियां रसोई में बरबस गूंज उठी। जूठे बर्तन एक ओर खिसकाकर वो गढवाली में कुछ बड़बडाई (पैला मुर्दा मरलू ये सरकारो जेन इ ठ्यक्का खोलिन, दुसरू दारू बेचण वलो और तिसरू ये माच्यदो) और फिर कुठार पर पीठ टिकाकर अतीत की यादों मे गुम हो गई ।
एमए इंग्लिश से कर रही थी तब शादी हो गई। फाइनल इयर बचा था, लेकिन ससुराल की जिम्मेदारी वहन करते करते अभी तक पूरा नही कर पाई । शादी के दो चार दिन अच्छे से गुजर गये । लेकिन दो चार दिन में ही हकीकत से रूबरू होने लगी । सास और पति दोनो की प्रताड़ना उसके हौसलों और सपनो को ले डूबी । पढ़ने का तो घर वालो के सामने नाम भी नही लेना था। सास एकदम भडक उठती। हमारे जमाने में तो ब्वारी कुम कैदे वाली होती थी। सास- ससुर , ज्यठणा के सामने सर भी नी उठाती थी। हमने स्कूल नही पडा तो हम मनखी नही है। धाण काज कर क्यू हमारा गों मुलक मे नाक कटाने पे तुली है ” वो सहम कर अपने काम पे लग जाती । कभी गांव में कुछ अच्छे कपड़े पहन लिये तो लोग इधर उधर से ताक झांक करते, फलणे की ब्वारी का क्या फुक्याट हो रखा है बल। बकिबात की ल्वोख्योण है फैशन में उतरी रहती जैसे अपशरा होगी। सारी रात सोचने में गुजर गई। अचानक तन्द्रा टूटी तो देखा रतब्येणू धार में आ गया म, फिर अपने उर्ख्यला पंध्यरा में जुट गई।