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बीटेक वाले मजाक लगते हैं क्योंकि आपने बीटेक नहीं किया है

विकास-त्रिपाठी 

सोशल मीडिया: अभी-अभी एक महान आत्मा से बहस हो गई. ये महोदय कुछ साल पहले गाजियाबाद आ गए थे. गांव से दसवीं पास हैं और अभी एक तथाकथित कंपनी में काम कर रहे हैं. पिछले 10-15 सालों में गाजियाबाद ने बहुत बदलाव देखे हैं. तो इनकी भी तरक्की NCR के बदलते समय के साथ हुई. अभी ये 20-25 हजार कमाते हैं. साथ ही पैसे कमाने के और रास्ते भी जोड़ लिए है. उनकी नजर में वो सफल हैं. मुझे भी कोई दिक्कत नहीं है उनसे, लेकिन मेरी नजर में सफल और समृद्ध होनी की परिभाषा थोड़ी अलग है.

खैर, बात ये हुई कि उन्होंने वो बात छेड़ दी, जो पिछले 4 साल की इंजीनियरिंग के दौरान मैंने सबसे सुना है. चाहे वो मेरे पापा के दोस्त हो या कोई तथाकथित प्रबुद्ध इंसान. अच्छा बीटेक कर रहे हो? आजकल तो इतने बीटेक वाले हो गये हैं कि पूछ मत. जिसे देखो, वही बीटेक कर रहा है. तिवारी जी, इतने इंजीनियरिंग वाले सड़क पर घूम रहे हैं. फिर भी आपने इसका दाखिला करा दिया? 10 लाख लगाने के बाद भी 15-20 हजार की नौकरी इतनी मुश्किल से मिली रही है. आपने इतने पैसे बैंक में भी रख दिया होता, तो इससे ज्यादा ब्याज मिल जाता. और 10 लाख भी बच जाते. इतने पैसों से कोई व्यवसाय ही कर लेते तो ज्यादा कमाई हो जाती.
हर बार मैं इन बातों को हंस के टाल देता था. क्योंकि बड़ों को जवाब देने की आदत नहीं है. लेकिन ऐसी बातों से पापा घबरा जाते थे. कभी-कभी उन्हें लगने लगाता था कि उनसे गलती तो नहीं हो गई है.

मैं ये सुनते रहता हूं कि फलां के बेटे को देखो. दुकान कर लिया है, महीने का 30-35 हजार से ज्यादा ही कमा लेता है. फलां को देखो, पढ़ाई-लिखाई पर बिना पैसा खर्च किए विदेश चला गए और अब घर बना रहा है. वो मुनचुन अब कोयला का ठेकेदार हो गया है, और बोरी भर के पैसा कमा रहा है. और वो सचिन पुलिस में भर्ती हो गया है. अब तो उसके घरवालों की तो लॉटरी लग गई है.

बातें तो बहुत है लेकिन इतना काफी है, मेरा दर्द समझने के लिए. 4 सालों की पढ़ाई मेरी इन्हीं बातों के साथ ही तो हुई है. आज जब मेरा सपना पूरा हो रहा है. एक बड़ी कंपनी में बतौर इंजीनियर काम कर रहा हूं. लेकिन यहां भी एक ऐसे महाशय से मुलाकात हो गई, जो सफलता को पैसों की तराजू से तौलते हैं. कहने लगे मैं तो सिर्फ दसवीं पास हूं और 25-30 हजार कमा लेता हूं. और आप 10 लाख लगाकर बीटेक करके मुझसे कम कमाते हैं. क्या फायदा ऐसी पढ़ाई का?

अब बस, बहुत सम्मान, अब मेरी सुनो.

हां, 10 लाख लगाकर की है बीटेक. उम्र से पहले बड़ा होकर, मेहनत करके, मां-बाप, भाई-बहनों से दूर रहकर. पता है क्यों कि बीटेक? ताकि अपने आप से उठकर कुछ सोच सकूं. दुकान और विदेश जाने की सोच से बाहर निकलूं. स्वार्थी न बनूं. सिर्फ अपनी तिजोरी भरने के बारे में न सोचूं, बल्कि लोगों के बारे में सोचूं. आप लोगों की तरह नहीं. जो समाज बदलने की बातें करते हैं लेकिन करते नहीं.

मुझे अब तक एक भी बीटेक वाले सड़क पर घूमता नहीं दिखा. अगर आपको मिला है तो जाकर उसकी सच्चाई देखो. सब कुछ समझ जाओगे. आपने सिर्फ उसे बीटेक पढ़ते सुना है. लेकिन उसने बीटेक में क्या किया है, वो नहीं देखा है. किसी एक को सड़क पर घूमते देखकर अंदाजा मत लगाइए. और न ही सबको एक तराजू में तौलिए. अगर सब लोगों आपकी तरह सोचने लगे तो देश में न कलाम होते न रमन. मैं भगवान का शुक्रिया करता हूं कि इस देश में मेरे मां-बाप जैसे लोगों को बनाया हैं. वरना पता नहीं इस देश का क्या होता.

चलो मान लिए कि आपको बीटेक वालों से ज्यादा पैसा मिलता होगा. वो पैसा तुम्हारे लिए मायने रखता होगा. हमारे लिए नहीं, क्योंकि हमें अपने काम से प्यार है. इंजीनियर होने के एहसास से प्यार है. रही बात पैसों की तो हम चाहे शुरुआत कैसी भी करें. एक साल के अनुभव के बाद आपके 15 साल की मेहनत को पीछे छोड़ देंगे. जानते हो क्यों? क्योंकि हमने बीटेक किया है.
एक आखिरी बात. आपने अपने बेटे को विदेश भेजने के बजाए 1 सेमेस्टर के लिए भी बीटेक कराया होता, तो दोनों को बीटेक का महत्व पता होता. 50 सबजेक्ट के डेढ़ सौ पेपर और 32 प्रैक्टिकल्स पास करने के बाद कोई बनता है बीटेक. दम है तो बीटेक की 4 साल की पढ़ाई करके दिखाओ. फिर मैं बताऊंगा कि कितने बीटेक वाले सड़क पर घूम रहे हैं.

बीटेक करके एक इंजीनियर होने का एहसास मिला. जान की बाजी लगाने वाले दोस्त मिले, प्यार मिला जिसके लिए जान भी दिया जा सकता है, देश के लिए कुछ कर जाने की सोच मिली, मुश्किल हालात को हैंडल करने की ताकत मिली.
आप दिमाग पर जोर न डालें. ये बातें समझ नहीं आएगी. पता है क्यों? क्योंकि आपने बीटेक नहीं किया है.

विकास त्रिपाठी उन लोगों में से हैं, जो मात्र इंजीनियरिंग करते नहीं हैं जीते भी हैं. इंजीनियर्स का लाख मजाक उड़ता है. बीई वाले, बीटेक वाले कहकर लोग हंसते हैं. बेरोजगार रह जाओगे कह खिल्ली उड़ाते हैं. एक स्टीरियोटाइप गढ़ दिया गया है, पर एक सच है. और सच ये कि इंसान एक बार इंजीनियर बन गया तो वो उस भाव के साथ जीता है. व्यवहार में इंजीनियरिंग आ जाती है. मरते दम तक वो इंजीनियर रहता है, भले वो फील्ड बदलकर किसी और तरफ भी क्यों न चला जाए. फिर कोई इस भाव का मजाक उड़ाए तो कुछ वैसा बह निकलता है जैसा विकास ने लिख भेजा. आप भी लिख भेजें

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