लखीसराय के क्रांतिकारियों की शहादत की कहानी युवाओं के सीने में देशभक्ति का जज्बा पैदा करती है। 09 अगस्त 1942 को आजादी के इन दीवानों ने बड़हिया रेलवे स्टेशन पर तिरंगा लहराया था।
पटना: लखीसराय के क्रांतिकारियों की शहादत आज भी आजादी की याद ताजा कर देती है। नौ अगस्त 1942 (क्रांति दिवस) के दिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर लखीसराय व बड़हिया के क्रांतिकारियों ने करो या मरो का नारा देते हुए अंग्रेजों भारत छोड़ो की जयघोष किया था।
अंग्रेजों को खदेड़ कर पहली बार बड़हिया रेलवे स्टेशन एवं हाई इंगलिश स्कूल बड़हिया पर भारतीय तिरंगा फहराया गया था। अंग्रेजों भारत छोड़ो अभियान का नेतृत्व कर रहे बड़हिया वासी स्व. सिद्ध जी, नाको सिंह, गुज्जु सिंह, परशुराम सिंह, जुल्मी महतो, बैजनाथ सिंह, दारो सिंह, महादेव सिंह, यमुना प्रसाद सिंह, भोपाल जायसवाल आदि क्रांतिकारियों ने बड़हिया स्थित पुरानी छावनी और नई छावनी पर तैनात अंग्रेजों को खदेड़ दिया था।
वे लाठी-गोली की परवाह किए बिना आगे बढ़ते गए थे और 09 अगस्त 1942 को पहली बार आजादी के इन दीवानों ने बड़हिया रेलवे स्टेशन पर वंदे मातरम के साथ तिरंगा लहराया था। बड़हिया को अंग्रेजों से मुक्त कराने के बाद क्रांतिकारियों की टोली 13 अगस्त 1942 को जुलूस की शक्ल में अंग्रेजों भारत छोड़ो का शंखनाद करते हुए लखीसराय स्टेशन की ओर बढ़े ही थे कि अंग्रेजों ने जुलूस पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी थी।
इस फायरिंग में बड़हिया के पांच सहित जिले के कुल नौ क्रांतिकारी शहीद हुए थे। देश की आजादी में स्वर्णिम दिवस के रूप में चर्चित बड़हिया के स्वतंत्रता आंदोलन की गाथा आज भी अविस्मरणीय है। आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की याद में बड़हिया प्रखंड कार्यालय परिसर में बनाया गया शहीद स्थल, लखीसराय में शहीद द्वार एवं शहीद वेदी वर्तमान में उपेक्षित है। लेकिन लखीसराय स्टेशन के नजदीक मुख्य सड़क पर खड़ा शहीद द्वार अगस्त क्रांति की याद दिला रहा है।